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शब्दसम्बन्धविचारः
ननु शब्दार्थयोः सम्बन्धासिद्धः कथमाप्तप्रणीतोपि शब्दोऽर्थे ज्ञानं कुर्याद्यत प्राप्तवचननिबन्धनमित्यादि वचः शोभेतेत्याशङ्कापनोदार्थम् ‘सहजयोग्यता' इत्याद्याह
सहजयोग्यतासंकेतवशाद्धि शब्दादयः वस्तुप्रतिपत्तिहेतवः ।।१०॥
बौद्ध- जैन ने शब्द को अनित्य सिद्ध करके प्राप्त पुरुष के शब्द द्वारा होने वाले पदार्थ के ज्ञान को आगम प्रमाण बताया। किंतु शब्द और अर्थ का कोई भी सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता, फिर प्राप्त का कहा हुआ वचन पदार्थ का ज्ञान किस प्रकार करा सकता है जिससे प्राप्तवचनादि निबन्धन ... इत्यादि आगम प्रमाण का लक्षण घटित हो सके ?
जैन- अब इस शंका का समाधान अग्रिम सूत्र द्वारा करते हैं
सहजयोग्यतासंकेतवशाद्धि शब्दादयः वस्तु प्रतिपत्ति हेतवः ॥१००।।
सूत्रार्थ - शब्द वर्ण वाक्यादि में ऐसी सहज योग्यता है जिस योग्यता के कारण तथा संकेत होने के कारण ( यह घट है इस पदार्थ को घट शब्द से पुकारते हैं इत्यादि संकेत के कारण ) वे शब्दादिक अर्थ का ज्ञान कराने में हेतु हो जाते हैं ।
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