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प्रमेयकमलमार्तण्डे
सहजा स्वाभाविकी योग्यता शब्दार्थयोः प्रतिपाद्यप्रतिपादकशक्तिः ज्ञानज्ञेययोप्यिज्ञापकशक्तिवत् । न हि तत्राप्यतो योग्यतातोऽन्यः कार्यकारणभावादिः सम्बन्धोस्तीत्युक्तम् । तस्यां सत्यां संकेतः । तद्वशाद्धि स्फुटं शब्दादयो वस्तुप्रतिपत्तिहेतवः ।
शब्द और पदार्थ में सहज स्वाभाविक योग्यता होती है उसी के कारण शब्द प्रतिपादक और पदार्थ प्रतिपाद्य की शक्ति वाला हो जाया करता है, जिस प्रकार ज्ञान और ज्ञेय में ज्ञाप्य ज्ञापक शक्ति हुआ करती है। ज्ञान और ज्ञेय में भी सहज योग्यता को छोड़कर अन्य कोई कार्य कारण आदि सम्बन्ध नहीं होता, इस विषय को पहले ( प्रथम भाग में ) निर्विकल्प प्रत्यक्षवाद और साकार ज्ञानवाद प्रकरण में भलीभांति सिद्ध कर दिया है।
विशेषार्थ-शब्द और पदार्थ में वाच्य-वाचक सम्बन्ध है न कि कार्यकारण आदि सम्बन्ध । ज्ञान और ज्ञेय अथवा प्रमाण और प्रमेय में भी कार्य कारण आदि सम्बन्ध नहीं पाये जाते अपितु ज्ञाप्य ज्ञापक सम्बन्ध ही पाया जाता है । बौद्ध ज्ञान और ज्ञेय में कार्य कारण सम्बन्ध मानते हैं उनका कहना है कि ज्ञान ज्ञेय से उत्पन्न होता है अतः ज्ञान कार्य है और उसका कारण ज्ञेय ( पदार्थ ) है किन्तु यह मान्यता सर्वथा प्रतीति विरुद्ध है । ज्ञानानुभव आत्मा में होता है अथवा यों कहिये कि अग्नि और उष्णतावत् प्रात्मा ज्ञान स्वरूप ही है ऐसा प्रात्मा से अपृथक्भूत ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न होना सर्वथा असंभव है इसका विस्तृत विवेचन इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग में प्रकाशित हो चुका है वहां निर्विकल्प प्रत्यक्षवाद और साकार ज्ञानवाद नामा प्रकरण में सिद्ध कर दिया है । ज्ञान प्रात्मा से ही उत्पन्न होता है ज्ञेय से नहीं, फिर भी प्रतिनियत ज्ञेयको जानता अवश्य है, अर्थात् अमुक ज्ञान अमुक पदार्थ को जान सकता है अन्य को नहीं ऐसी प्रतिकर्म व्यवस्था ज्ञानकी क्षयोपशम जन्य योग्यता के कारण हमा करती है। अस्तु । यहां पर शब्द और पदार्थ के योग्यता का कथन हो रहा है कि ज्ञान और ज्ञेय के समान ही शब्द और अर्थ में परस्पर में वाच्य वाचक सम्बन्ध होता है उस सम्बन्ध के कारण ही "घट" यह दो अक्षर वाला शब्द कंबुग्रीवादि से विशिष्ट पदार्थ को कहता है और यह कंबु आदि आकार से विशिष्ट घट पदार्थ भी उक्त शब्द द्वारा अवश्यमेव वाच्य होता है ( कहने में आ जाता है ) तथा शब्द द्वारा पदार्थ में बार बार संकेत भी किया जाता है कि यह गोल ग्रीवादि आकार वाला पदार्थ घट है इसको
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