Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे वर्णः' इत्यनुसन्धानाभावः सोऽसिद्धः, तथानुभू(तथाभू)तानुसन्धानस्यानुभूयमानत्वेनाऽभावासिद्ध। अथ गादौ वर्णान्तरे गृह्यमाणे 'अयमपि कादिः' इत्यनुसन्धानाभावान्न सामान्यसद्भावः; तहि शाबलेयादावपि व्यक्त्यन्तरे गृह्यमाणे 'अयमपि बाहुलेयः' इत्यनुसन्धानाभावाद्गोत्वस्याप्यभावः। अथ 'गौगौः' इत्यनुगताकारप्रत्ययसद्भावान्न गोत्वाऽसत्त्वम्; तदन्यत्रापि समानम्-तत्रापि हि 'वर्णो वर्णः' इत्यनुगताकारप्रत्ययोस्तु, तत्कथं वर्णेषु वर्णत्वस्य गादिषु गत्वादेः शब्दे शब्दत्वस्याभावः निमित्ताऽविशेषात् ? तथाहि-समानासमानरूपासु व्यक्तिषु क्वचित् 'समानाः' इति प्रत्ययोऽन्वेत्यन्यत्र व्यावर्त्तते । यत्र च प्रत्ययानुवृतिस्तत्र सामान्यव्यवस्था, नान्यत्र । सा च प्रत्ययानुवृत्तिर्गादिष्वपि समानेति कथं न तत्र सामान्यव्यवस्था ? तथाप्यत्र सामान्यानभ्युपगमे शाबलेयादावपि सोस्तु । न हि
जैन- यह कथन गलत है, जब ग आदि वर्णान्तर का ग्रहण होता है तब "यह भी वर्ण है" ऐसा अन्य वर्ण में अनुसंधान का अभाव करना चाहते हैं तो वह प्रसिद्ध है क्योंकि ऐसा अनुसंधान होते हुए अनुभव में आ रहा है। अभिप्राय यह हुआ कि कोई एक विवक्षित गत्व है उसमें अन्य कत्व आदि तो नहीं है किन्तु वर्णपने की समानता तो है ही अत: उनमें वर्णत्व सामान्य का अनुसंधान तो अवश्य होगा।
शंका - गकार प्रादि वर्णान्तर के ग्रहण करते समय “यह भी क आदि वर्ण है" ऐसा अनुसंधान नहीं होता अतः उनमें सामान्य का सद्भाव नहीं मानते ?
समाधान-तो फिर शाबलेय आदि में अन्य व्यक्ति को ग्रहण करते समय यह भी बाहुलेय है ऐसा अनुसंधान नहीं होने से उसमें गोत्व का अभाव होवेगा।
शंका- शाबलेय, बाहुलेय आदि गायों में गो है गो है ऐसा अनुगत प्रत्यय पाया जाता है अतः उनमें गोत्व सामान्य का प्रभाव नहीं होता है ।
समाधान-ठीक है, यही बात शब्द के विषय में है "यह वर्ण है यह वर्ण है" इस प्रकार वर्गों में भी अनुगत प्रत्यय होता है, अतः श्राप निमित्त की अविशेषता होते हुए भी वर्गों में वर्णत्व ग आदि में गत्व, शब्द में शब्दत्व का अभाव किस प्रकार मानते हैं ? अर्थात् जैसे गो में अनुगत प्रत्यय होता है, वैसे वर्गों में भी अनुगत प्रत्यय होता ही है। समान और असमान रूप वाले व्यक्तियों में कहीं तो समान है ऐसा अनुगत प्रत्यय होता है और अन्यत्र वह प्रत्यय नहीं होता, जहां पर समान प्रत्यय की अनुवृत्ति होती है वहीं पर सामान्य की व्यवस्था होती है अन्यत्र नहीं। ऐसी प्रत्ययों की अनुवृत्ति ग आदि वर्ण में भी पायी जाती है, फिर उनमें सामान्य की व्यवस्था क्यों
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