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शब्दनित्यत्ववादः
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. किञ्च, सामान्याद्विशेष: प्रतिनियतेन रूपेण लक्ष्येत, साधारणेन वा? न तावदाद्यः पक्षः, प्रतिनियतरूपतयाऽस्याऽप्रतीतेः । न हि शब्दोच्चारणवेलायां जातिपरिमितो विशेषोऽसाधारणरूपतयाऽनुभूयते प्रत्यक्षप्रतिभासाऽविशेषप्रसङ्गात् । प्रतिनियतरूपेण जातेरविनाभावाभावाच्च कुतस्तया तस्य लक्षणम् ? नापि द्वितीयः; साधारणरूपतया प्रतिपन्नस्यापि विशेषस्यार्थक्रियाकारित्वाऽसामर्थ्येन प्रवृत्त्यहेतुत्वात्, प्रतिनियतस्यैव रूपस्य तत्र सामोपलब्धेः । पुनरपि साधारणरूपतातो विशेषप्रतिपत्तावनवस्था स्यात् । साधारणरूपतया चातो विशेषप्रतिपतौ सामान्यात्सामान्यप्रतिपत्तौ सामान्यप्रतिपत्तिरेव स्यान्न विशेषप्रतिपत्तिः, साधारणरूपताया: सामान्यस्वभावत्वात् ।
किंच, यदि नाम शब्दाज्जातिः प्रतिपन्ना व्यक्ते: किमायातम्, येनासौ तां गमयति ? तयोः सम्बन्धाच्चेत्; सम्बन्धस्तयोस्तदा प्रतीयते, पूर्व वा ? न तावत्तदा; व्यक्तेरनधिगतेः 'जातिरेव हि
दूसरी बात यह है कि आपने जो सामान्य से विशेष का प्रतिभास होना बतलाया वह प्रतिनियत रूप द्वारा लक्षित होता है अथवा साधारण रूप द्वारा लक्षित होता है ? प्रथम पक्ष ठीक नहीं है, प्रतिनियत रूप से विशेष का प्रतिभास होता हुआ देखा नहीं गया है, इसी का खुलासा करते हैं-जब शब्द का उच्चारण कर रहे हैं उस समय जाति परिमित विशेष असाधारण रूप से अनुभव में नहीं पाता, यदि आता तो दोनों का ( सामान्य विशेष का ) अविशेष रूप से प्रत्यक्ष प्रतिभास हो जाता, तथा प्रतिनियत रूप के साथ सामान्य का अविनाभाव होता ही नहीं अतः उसके द्वारा विशेष का ज्ञान कैसे होगा ? दसरा पक्ष-साधारण रूप से सामान्य द्वारा विशेष लक्षित किया जाता है ऐसा मानना भी ठीक नहीं है। मात्र साधारण रूप से जाना हुया जो विशेष है उससे अर्थ क्रिया होना शक्य नहीं, अतः वह प्रवृत्ति का हेतु बन नहीं सकता, प्रवृत्ति कराने की सामर्थ्य तो प्रतिनियत रूप में ही होती है। यदि साधारण रूप से विशेष को जानकर फिर विशेष की प्रतिपत्ति होती है ऐसा माना जाय तब तो अनवस्था होवेगी। तथा साधारण रूप से सामान्य के द्वारा विशेष की प्रतिपत्ति होती है ऐसा माने तो सामान्य से सामान्य की प्रतिपत्ति हुई ऐसा ही कहलायेगा ? विशेष की प्रतिपत्ति तो होवेगी नहीं ? क्योंकि साधारण रूप तो सामान्य स्वभाव वाला ही होता है। .. यह भी बात है कि शब्द से जाति सामान्य जानी भी गई तो उससे व्यक्ति का (विशेष का) क्या हुआ, जिससे वह व्यक्ति को बतला देवे ? जाति और व्यक्तिका सम्बन्ध है अत: जाति को जानने से व्यक्ति का जानना भी हो जाता है ? ऐसा कहना
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