Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
पद एवं वाक्य मनुष्य द्वारा रचित पद और वाक्यके समान ही है तब कैसे कह सकते हैं कि वे अपौरुषेय हैं ? रही बात अदृश्य पदार्थके व्याख्यानकी सो सर्वज्ञसिद्धि प्रकरणमें इसका निश्चय कर आये हैं कि किन्ही किन्ही मनुष्य विशेषोंके आवरणके हट जानेपर पूर्ण ज्ञानकी प्राप्ति रूप सर्वज्ञता हो सकती है, मीमांसक सर्वज्ञको नहीं मानते किन्तु यह मान्यता उन्हींसे बाधित होती है, क्योंकि वेदके पद एवं वाक्योंका अर्थ करनेवाला व्याख्याता पुरुष यदि अल्प ज्ञानी है तो वह अतीन्द्रिय पदार्थका ज्ञाता नहीं होनेसे विपरीत प्रतिपादन कर देगा और सर्वज्ञ है तो प्रतिज्ञा हानि नामक दोष ( सर्वज्ञ नहीं है ऐसी मान्यतामें दोष ) आयेगा। अतः निश्चित होता है कि वेदके वाक्य पद एवं वर्ण पुरुष कृत है अपौरुषेय नहीं है ।
।। वेदापौरुषेयत्ववाद समाप्त ।।
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