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प्रमेयकमलमार्तण्डे
मानना होगा ? क्योंकि आपके यहां सत्यता का निर्णय औरुषेयत्व पर निर्भर है ? आपके वेदमें ऋषियों के नाम हैं सो उसका अनादिपना कैसे ? काण्व, माध्यन्दिन आदि ऋषि लोग, वेद के कर्ता हैं या उसके प्रकाशक हैं अथवा मात्र देखने वाले हैं यह बताना होगा । इन ऋषियोंको वेद का कर्ता तो कहेंगे नहीं। प्रकाशक माने तो भी प्रश्न होगा कि क्या वेद नष्ट हो गया था सो उन ऋषियों ने प्रकाशन कराया ? इस तरह मानने से तो अस्मर्यमाण कर्तृत्व हेतु और अपौरुषेय साध्य दोनों ही नष्ट होते हैं। दूसरे अनुमानका वेदाध्ययनत्व हेतु विशेषण रहित है या अस्मर्यमाणकर्तृत्वरूप विशेषण युक्त है ? विशेषण रहित कहे तो अनेकांतिक होगा क्योंकि भारतादि ग्रन्थका अध्ययन भी गुरु अध्ययन पूर्वक है । तथा अपौरुषेय साध्य को किस प्रमाण से सिद्ध करेंगे इसी अतुमानसे या अन्य से ? अन्य प्रमाण से करते हैं तो यह वेदाध्ययन आदि हेतु वाले अनुमान व्यर्थ ठहरते हैं, और इसी हेतु वाले अनुमान के द्वारा करे तो अन्योन्याश्रय दोष आता है।
आगम से नेद को अपौरुषेय सिद्ध करना अशक्य है, अन्योन्याश्रय दोष प्राता है अर्थात् आगम अपौरुषेय सिद्ध होने पर बदमें अप्रमाण्य का अभाव सिद्ध होगा और उसके सिद्ध होने पर आगमकी अपौरुषेयता सिद्ध होगी। जबरदस्ती अपौरुषेय नेद को मान भी लेवें तो उसके व्याख्यान में विवाद है उस नेदका व्याख्यान सामान्य लोग करते हैं तो उन्हें वेद कथित अतीन्द्रिय वस्तुका बोध नहीं होनेसे वेद का अर्थ अप्रमाण होगा। वेद व्याख्याता अतीन्द्रिय पदार्थोंका ज्ञाता है ऐसा माने तो वेदको अपौरुषेय मानने का आग्रह व्यर्थ है। उसी अतीन्द्रियदर्शी सर्वज्ञ के द्वारा वेद रचना हो जायगी ? अतः यह अनुमान प्रयोग सत्य है कि वेद के पद और वाक्य पौरुषेय है क्योंकि वे पुरुष के द्वारा रचित पद, वाक्यके समान हैं। "यह पुरुष रचित वचन समानत्व" हेतु प्रसिद्ध नहीं है क्योंकि वेदमें वचनों की रचना प्रत्यक्ष दिखाई देती है, अनेकान्तिक दोष भी नहीं है क्योंकि यह हेतु पक्ष सपक्ष में होकर विपक्ष जो अपौरुषेय आकाशादि है उनमें नहीं जाता है। अनेकान्तिक नहीं होने से विरुद्ध भी नहीं है तथा प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित नहीं होने के कारण कालात्ययापदिष्ट भी नहीं है । प्रकरणसम दोष भी सत्प्रतिपक्ष नहीं होने से दूर रहता है। इस तरह नर रचित पद रचना अविशिष्टत्व हेतु सम्पूर्ण दोषोंसे निर्मुक्त होकर अपना साध्य जो वेदका पौरुषेयत्व है उसे सिद्ध करता है।
।। समाप्त ।
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