Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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वेदापौरुषेयत्ववादः
वेद अपौरुषेयत्ववाद का सारांश
पूर्वपक्ष-मीमांसक-हमारी मान्यता है कि वेद अपौरुषेय है किसी पुरुष द्वारा उसकी रचना नहीं हुई है क्योंकि पुरुष को अतीन्द्रिय पदार्थ का ज्ञान नहीं होता है, अतः धर्म अधर्म आदि बहुत से अतीन्द्रिय पदार्थोंका कथन नहीं कर सकता है, तथा यह रागी द्वषी है इसलिये विपरीत अर्थ का प्रतिपादन भी कर सकेगा इत्यादि अनेक कारणोंसे हम मीमांसक वेद का कोई कर्ता नहीं मानते हैं। अनुमान के द्वारा भी वेद अपौरुषेय सिद्ध होता है "वेद अपौरुषेय है क्योंकि उसके कर्ता का स्मरण नहीं है" । स्मरण प्रत्यक्ष पूर्वक होता है किंतु वेद कर्त्ताका प्रत्यक्ष ज्ञान किसी को भी नहीं है । परम्परासे स्मृति चली पाना तभी सम्भव है जब पहले किसी न किसी को वह कर्ता प्रत्यक्ष हो । इस तरह अस्मर्यमाण कर्तृत्व हेतु वेदको अपौरुषेय सिद्ध करता है । तथा
वेदाध्ययनं सर्वं गुर्वध्ययन पूर्वकं ।
वेदाध्ययन वाच्यत्वादधुनाध्ययनं यथा ।।१।। वेद का अध्ययन शुरु से गुरु द्वारा ही होता चला पाया है क्योंकि वह वेदका अध्ययन है जैसे वर्तमान का अध्ययन ।
अतीतानागतौ कालौ वेदकार विजितौ ।
कालत्वात् तद् यथा कालो वर्तमानः समीक्ष्यते ।।१।।
भूत और भविष्यत काल वेद कर्ता से रहित है, क्योंकि काल रूप है। इन अनुमानोंके द्वारा वेद का अपौरुषेयपना अच्छी तरह सिद्ध होता है।
उत्तर पक्ष जैन-यह सर्व कथन युक्ति संगत नहीं है, आप वेदके पदको अपौरुषेय मानते हैं या वाक्य को या दोनों को ? दोनों को कहो तो वह अनुमान बाधित है - वेद पौरुषेय है क्योंकि पद एवं वाक्य रूप है, जैसे भारतादि ग्रन्थ हैं। आपने कहा कि वेद कर्ता का किसी प्रमाण से ग्रहण नहीं होता किन्तु यह कथन सिद्ध नहीं होता । तथा वेदके अपौरुषेयत्व को सिद्ध करने वाले अनुमान का हेतु असत् है । अस्मर्यमाण कर्तृत्व प्रापको है हमारे यहां वेद कर्ताका स्मरण है (जैन कालासुर नामक राक्षस को वेदका कर्ता मानते हैं जिसने पशु बलि की पद्धति चलाकर अन्त में सुलसा प्रादि का होम कराया था) तथा चोरी आदिका उपदेश भी अपौरुषेय होनेसे सत्य
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