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प्रमेयकमलमार्तण्डे विनाभूतो हेतुर्धमिणि प्रवर्त्तमानः स्वसाध्यं प्रसाधयति तत्रैव प्रमाणान्तरं प्रवृत्तिमासादयत्तमेव धर्म व्यावर्त्तयति; एकस्यैकदैकत्र विधिप्रतिषेधयोविरोधात् । प्रकरणसमत्वमपि प्रतिहेतोविपरीतधर्मप्रसाधकस्य प्रकरण चिन्ताप्रवर्त्त कस्य तत्रैव धर्मिणि सद्भावोऽभिधीयते । न च स्वसाध्याविनाभूतहेतुप्रसाधितधर्मिणो विपरीतधर्मोपेतत्वं सम्भवतीति न विपरीतधर्माधायिनो हेत्वन्तरस्य तत्र प्रवृत्तिरिति । तन्न वेदपदवाक्ययोनित्यत्वं घटते ।
नापि वर्णानां कृतकत्वतः शब्दमावस्यानित्यत्व सिद्धौ तेषामप्यनित्यत्व सिद्धौ तेषामप्यनित्यत्वोपपत्तेः। तथाहि-अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवत् । न च कृतकत्वमसिद्धम्; तथाहि-कृतकः शब्दः
जैनका यह हेतु कालात्ययापदिष्ट दोष युक्त भी नहीं है, जिस हेतुका पक्ष प्रत्यक्षसे बाधित हो या आगमसे बाधित हो उसके बाद भी उसका प्रयोग किया जाय तो वह हेतु कालात्ययापदिष्ट नामा हेत्वाभास होता है ऐसा आप मीमांसकका ही कहना है। धर्मीमें स्वसाध्यके साथ अविनाभाव रूपसे रहकर जो हेतु स्वसाध्यको सिद्ध कर देता है ऐसा विशिष्ट हेतु जहां पर रहता है वहां पर अन्य प्रत्यक्ष प्रादि प्रमाण प्रवृत्त होकर उस हेतुके साध्यधर्मको हटा देवे, सो हो नहीं सकता, क्योंकि एक जगह एक कालमें एक ही धर्मका विधि और प्रतिषेध करने में विरोध आता है। प्रकरणसम नामा दोष भी हमारे हेतुमें नहीं है, जहां प्रति हेतु आकर साध्य धर्मसे विरुद्ध धर्मको सिद्ध कर देने की संभावना होती है, जिसमें प्रकरण चिंता होती है, ऐसे सत्प्रतिपक्षवाले हेतुको प्रकरणसम हेत्वाभास कहते हैं, स्वसाध्यके अविनाभावी हेतुक द्वारा साध्यधर्मी के सिद्ध होने पर ऐसा दोष नहीं पाता, उस धर्मीमें विपरीत धर्म युक्त होनेकी संभावना नहीं रहती अतः साध्यसे विपरीत धर्मको सिद्ध करने वाला अन्य हेतु उसमें प्रवृत्त नहीं हो सकता । इसप्रकार हम जैनका “नर रचित शब्द रचना अविशिष्टत्वात्" हेतु प्रसिद्ध विरुद्ध अनैकान्तिक कालात्ययापदिष्ट और प्रकरणसम इन पांचों दोषोंसे रहित है ऐसा सिद्ध होता है और इसीलिये वह स्वसाध्यको ) वेदके पौरुषेयत्वको ) नियमसे सिद्ध करता है । अतः वेदके पद एवं वाक्योंको नित्य रूप सिद्ध करना घटित नहीं होता। वेदके पद वाक्य तो पौरुषेय अनित्य ही सिद्ध होते हैं।
पद और वाक्योंके समान वर्णों का नित्यपना ( अपौरुषेयत्व ) भी सिद्ध नहीं होता, शब्दमात्र ही फिर चाहे वे वर्णरूप हो पद रूप हो या वाक्यरूप हो सब कृतकत्व हेतु द्वारा अनित्य ही सिद्ध होते हैं, अर्थात् शब्द अनित्य हैं क्योंकि वे किये हुए हैं इस
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