Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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वेदापौरुषेयत्ववादः
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इति । तदप्यसमीचीनम्; यतोऽपौरुषेयत्वमस्याः किमन्यतः प्रमाणात्प्रतिपन्नम्, अत एव वा ? यद्यन्यतः; तदाऽस्य वैयर्थ्यम् । अत एव चेत्, नन्वतोऽनुमानादपौरुषेयत्व सिद्धौ प्रेरणायामप्रामाण्याभावः स्यात्, तदभावाच्च तथाभूतप्रेरणाप्रणेतृत्वासामर्थ्येन सर्वपुरुषाणामीदृशत्वसिद्धिरित (रितीत) रेतराश्रयः । तन्न निविशेषणोयं हेतुः प्रकृतसाध्यसाधनः।
अथ सविशेषणः; तदा विशेषणस्यैव केवलस्य गमकत्वाद्विशेष्योपादानमनर्थकम् । भवतु विशेषणस्यैव गमकत्वम् का नो हानि:, सर्वथाऽपौरुषेयत्व सिद्धया प्रयोजनात्; तदप्ययुक्तम्; यतः कत्रऽस्मरणं विशेषणं किमभावाख्यं प्रमाणम्, अर्थापत्तिः, अनुमानं वा ? तत्राद्यः पक्षो न युक्तः; अभावप्रमाणस्य स्वरूपसामग्री विषयाऽनुपपत्तितः प्रामाण्यस्यैव प्रतिषिद्धत्वात् ।
जैन -- यह कथन असमीचीन है, वेदका अपौरुषेयपना अन्य प्रमाणसे जाना जाता है या इसी वेदाध्ययन वाच्यत्व हेतुसे जाना जाता है ? यदि अन्य प्रमाणसे जाना जाता है तो यह हेतु व्यर्थ ठहरता है और इसी हतुसे जाना जाता है तो अन्योन्याश्रय आता है-वेदाध्ययनवाच्यत्व हेतुवाले अनुमानसे वेदका अपौरुषेयत्व सिद्ध होने पर उसमें अप्रामाण्यका अभाव सिद्ध होगा और अप्रामाण्यका अभाव सिद्ध होने पर सभी पुरुषोंके अतीन्द्रिय अर्थका प्रतिपादन करनेवाले वेदकी रचना करनेकी असामर्थ्य निश्चित होकर वेद अपौरुषेय सिद्ध होगा। अतः निर्णय होता है कि वेदाध्ययन वाच्यत्व हेतु निविशेषण होनेसे प्रकृत साध्य जो अपौरुषेयत्व है उसको सिद्ध नहीं कर पाता।
अब यदि मीमांसक अपने वेदाध्ययन वाच्यत्व हेतुमें विशेषण जोड़ देते हैं तो हम जैन कहेंगे कि अकेला विशेषण ही साध्यका गमक होनेसे विशेष्यका ग्रहण व्यर्थ ही ठहरता है।
___ मीमांसक-- अकेला विशेषण साध्यका गमक हो जाय इसमें हमारी क्या हानि हैं ? हमारा प्रयोजन तो वेदको सर्वथा अपौरुषेय सिद्ध करनेका है वह चाहे जिससे हो।
जैन-आपने विशेषण मात्रको हेतु रूप स्वीकार कर लिया सो ठीक है किन्तु यह कर्ताका अस्मरणरूप विशेषण कौनसा प्रमाण कहलायेगा -- प्रभाव प्रमाण, अर्थापत्ति या अनुमान ? अभाव प्रमाणरूप है ऐसा कहना बनता नहीं, क्योंकि अभावप्रमाणकी सामग्री, स्वरूप एवं विषय ये सब किसी प्रकारसे भो सिद्ध नहीं हो पाते हैं, अर्थात् न अभाव प्रमाणका स्वरूप सिद्ध है और न विषय अादि ही सिद्ध हैं, अतः इसमें प्रामाण्य
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