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प्रमेयकमलमार्तण्डे
इत्यपि प्रत्युक्तम्, प्राक्तनानुमानद्वयोक्ताशेषदोषाणामत्राप्यविशेषात् । आगमान्तरेप्यस्य तुल्यत्वाच्च ।
किंच, इदानीं यथाभूतो वेदाकरणसमर्थपुरुषयुक्तस्तत्कर्तृ पुरुषरहितो वा कालः प्रतीतोऽतीतोऽनागतो वा तथाभूतः कालत्वात्साध्येत, अन्यथाभूतो वा ? यदि तथाभूतः; तदा सिद्धसाध्यता । अथान्यथाभूतः; तदा सन्निवेशादिवदऽप्रयोजको हेतुः । अथ तथाभूतस्यैवातीतस्यानागतस्य वा कालस्य तद्रहितत्वं साध्यते, न च सिद्धसाध्यताऽन्यथाभूतस्य कालस्यासम्भवात् । नन्वन्यथाभूत: कालो नास्तीत्येतत्कुतः प्रमाणात्प्रतिपन्नम् ? यद्यन्यता; तहि तत एवापौरुषेयत्वसिद्धः किमनेन ? अत एवेति चेत्; ननु 'अन्यथाभूतकालाभावसिद्धावतोऽनुमानात्तद्रहितत्व सिद्धिः, तत्सिद्ध श्चान्यथाभूतकालाभावसिद्धिः' इत्यन्योन्याश्रयः।
नागत काल वैसे पुरुषोंसे युक्त था एवं होगा, अथवा अतीतानागत काल किसी अन्य प्रकारका था ? यदि वर्तमान जैसा अतीतादि काल था ऐसा कहो तो सिद्ध साध्यता है, क्योंकि वर्तमानके जैसे पुरुष वेदको रचते हैं ऐसा हम नहीं कहते हैं । यदि अतीतादि काल ग्रन्यथाभूत ( वर्त्तमानसे विशिष्ट ) था ऐसा कहो तो कालत्व नामा सामान्य हेतु सन्निवेशत्व आदि हेतुके समान अप्रयोजक बन जायगा।
मीमांसक- वर्तमान जैसा ही अतीतादि काल वेद कर्ता रहित सिद्ध किया जाता है और ऐसा साध्य बनानेमें सिद्ध साध्यता भी नहीं होती क्योंकि अन्यथाभूत ( अन्य प्रकारका ) काल है ही नहीं ।
जैन-अन्यथाभूत काल नहीं है ऐसा किस प्रमाणसे जाना है ? इस कालत्व नामा हेतुवाले अनुमानको छोड़ अन्य किसी प्रमाणसे जाना है ऐसा कहो तो उसी प्रमाणसे वेदका अपौरुषेयत्व भी सिद्ध होवेगा, इस अनुमानकी क्या जरूरत है ? तथा यदि कालत्व हेतुवाले इसी अनुमानसे अन्यथा कालका अभाव सिद्ध होता है ऐसा दुसरा विकल्प कहो तो अन्योन्याश्रय होगा- अन्यथाभूत कालका अभाव सिद्ध होवे तब उस अनुमानसे वेदकर्तासे रहित कालपना सिद्ध होवेगा और वेदकर्ता रहित कालत्वके सिद्ध होने पर अन्यथाभूत कालके अभावकी सिद्धि होवेगी ।
इस तरह यहां तक यह निर्णय हा कि अनुमान प्रमाणसे वेदका अपौरुषेयत्व सिद्ध नहीं होता है । अब अन्य प्रमाणोंका विचार करते हैं, आगम प्रमाण भी मीमांसक के अपौरुषेय वेदको सिद्ध नहीं कर सकता, इसमें भी अन्योन्याश्रयदोष पाता है,
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