________________
४२२
प्रमेयकमलमार्तण्डे नाप्यनुमानं तत्प्रसाधकम्; तद्धि कञऽस्मरणहेतुप्रभवम्, वेदाध्ययनशब्दवाच्यत्वलिङ्गजनितं वा स्यात्, कालत्वसाधनसमुत्थं वा ? तत्राद्यपक्षे किमिदं कत्तु रस्मरणं नाम-कर्तृ स्मरणाभावः, अस्मर्यमारणकत्त कत्वं वा ? प्रथमपक्षे व्यधिकरणाऽसिद्धो हेतुः, कर्तृ स्मरणाभावो ह्यात्मन्यपौरुषेयत्वं वेदे वर्तते इति ।
द्वितीयपक्षे तु दृष्टान्ताभावः; नित्यं हि वस्तु न स्मर्यमाणकर्तृकं नाप्यस्मर्यमाणकत कं प्रतिपन्नम्, किन्त्वकर्तृकमेव । हेतुश्च व्यर्थ विशेषणः; सति हि कर्तरि स्मरणमस्मरणं वा स्यान्नासति
भी पुरुष चाहे वह महायोगी भी क्यों न हो किन्तु धर्म अधर्मरूप अदृष्टको प्रत्यक्ष नहीं कर सकता । सो आपकी यह बात खंडित होगी, क्योंकि यहां इंद्रिय द्वारा धर्म आदिका ज्ञान होना स्वीकार कर रहे हैं ? अतः प्रत्यक्ष प्रमाण वेदके अपौरुषेयत्वको सिद्ध नहीं कर सकता।
__ अनुमान प्रमाण भी वेदके अपौरुषेयत्वको सिद्ध नहीं कर सकता, पाप अनुमानद्वारा अपौरुषेयत्वको सिद्ध करना चाहते हैं सो उस अनुमानमें कौनसा हेतू प्रयुक्त करेंगे, कर्ताका अस्मरणरूप या वेदाध्ययन शब्द वाच्यत्वरूप अथवा कालत्वरूप ? प्रथम पक्षमें प्रश्न होता है कि कर्ताका अस्मरण इस पदका क्या अर्थ है, कर्ताके स्मरणका अभावरूप अर्थ है या अस्मर्यमाणकर्तृत्वरूप अर्थ है ? (स्मृतिमें आये हुए कर्ताका निषेध करना रूप अर्थ है ?) प्रथम विकल्प कहो तो व्यधिकरण असिद्ध नामा हेत्वाभास बनता है कैसे सो ही बताते हैं - साध्य और हेतुका अधिकरण विभिन्न होना व्यधिकरण प्रसिद्ध हेत्वाभास कहलाता है, यहां पर कर्ताके स्मरण का अभावरूप हेतु है सो यह स्मरणका अभाव अात्मारूप अधिकरणमें है और अपौरुषेयरूप साध्य वेद अधिकरणमें है (अर्थात् स्मरणाभावरूप हेतु हमारे प्रात्मा में है और अपौरुषेयत्वको सिद्ध करना है वह साध्य वेद में है) अतः व्यधिकरण असिद्ध हेत्वाभास होता है ।
दूसरा विकल्प - अस्मर्यमाण कर्तृत्वरूप हेतु पदका अर्थ करते हैं तो दृष्टांतका अभाव होगा, जो वस्तु नित्य होती है वह स्मर्यमाण कर्तृत्वरूप भी नहीं है और अस्मर्यमाणकर्तृत्वरूप भी नहीं है वह तो अकर्तृत्वरूप ही है। ( क्योंकि नित्यवस्तुका कर्ता ही नहीं होता अतः उसके कर्ताका स्मरण है या नहीं इत्यादि कथन गलत ठहरता है) हेतुका विशेषण भी व्यर्थ होता है क्योंकि कर्त्ताके होने पर ही स्मरण और अस्मरण संबंधी प्रश्न होते हैं, कर्ताके अभाव में तो हो नहीं सकते, जैसे खरविषाणका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org