Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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Radiyan
वेदापौरुषेयत्ववादः DEBBBBBBBBBBBBBBBBBBB
अथेदानीमवसरप्राप्तस्यागमप्रमाणस्य कारणस्वरूपे प्ररूपयन्नाप्तेत्याद्याह
__ आप्तवचनादिनिबन्धनमर्थज्ञानमागमः ॥९९।। प्राप्तेन प्रणीतं वचनमाप्तवचनम् । प्रादिशब्देन हस्तसंज्ञादिपरिग्रहः। तन्निबन्धनं यस्य तत्तथोक्तम् । अनेनाक्षरथु तमनक्षरश्रुतं च संगृहीतं भवति । अर्थज्ञानमित्यनेन चान्यापोहज्ञानस्य
(आगम प्रमाण) अब अागम प्रमाणका वर्णन करते हुए उसका कारण तथा स्वरूप बतलाते हैं
प्राप्तवचनादिनिबंधनमर्थज्ञानमागमः ।।१६।। सूत्रार्थ- प्राप्तके वचनादिके निमित्तसे होनेवाले पदार्थोके ज्ञानको प्रागम प्रमाण कहते हैं। आप्त द्वारा कथित वचनको आप्तवचन कहते हैं, आदि शब्दसे हस्तका इशारा आदिका ग्रहण होता है, उन प्राप्त वचनादिका जिसमें निमित्त है उसे आप्त वचन निबंधन कहते हैं, इस प्रकारका लक्षण करनेसे अक्षरात्मक श्रुत और अनक्षरात्मक श्रु त दोनोंका ग्रहण होता है । सूत्रमें 'अर्थ ज्ञानं' ऐसा पद पाया है उससे बौद्ध के अन्यापोह ज्ञानका खण्डन होता है तथा शब्द संदर्भ ही सब कुछ हैं शब्दसे पृथक कोई पदार्थ नहीं है ऐसा शब्दाद्वैतवादीका खंडन हो जाता है। आप्त द्वारा कथित शब्दोंसे पदार्थों का जो ज्ञान होता है वह पागम प्रमाण है। अन्यापोह ज्ञान आदिक
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