Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमात्तण्डे स्यानेनानुमानात् । व्यवहारेण च प्रमाणचिन्ता भवता प्रतन्यते । “प्रामाण्यं व्यवहारेण" [प्रमाणवा. २१५] इत्यभिधानात् । सामग्रीतो रूपानुमाने च कारणात्कार्यानुमानप्रसङ्गाल्लिङ्गसंख्याव्याघातः स्यात् ।
तानेव व्याप्यादिहेतून् बालव्युत्पत्त्यर्थमुदाहरणद्वारेण स्फुटयति । तत्र व्याप्यो हेतुर्यथापरिणामी शब्दः, कृतकत्वात्, य एवं स एवं दृष्टः यथा घटः, कृतकरचायम्, तस्मापरिणा___ मीति । यस्तु न परिणामी स न कृतकः यथा वन्ध्यास्तनन्धयः, कृतकश्चायम् ,
तस्मात् परिणामीति ।।६।। 'दृष्टान्तो द्वधा अन्वयव्यतिरेकभेदात्' इत्युक्तम् । तत्रान्वयदृष्टान्तं प्रतिपाद्य व्यतिरेकदृष्टांतं प्रतिपादयन्नाह—यस्तु न परिणामी स न कृतको दृष्टः यथा वन्ध्यास्तनन्धयः, कृतकश्चायम्,
अनुसार प्रमाणका विचार करते हैं "प्रामाण्यं व्यवहारेण" ऐसा कहा गया है। तथा दूसरी बात यह होगी कि यदि सामग्रीसे रूपका अनुमान होना स्वीकार करते हैं तो कारणसे ( सामग्रीका अर्थ कारण है यह बात प्रसिद्ध ही है ) कार्यका अनुमान होना सिद्ध होता है, फिर आपके हेतुकी त्रिसंख्याका ( कार्य हेतु स्वभाव हेतु और अनुपलब्धि हेतु ) विघटन हो जाता है। इसप्रकार यह सिद्ध हुया कि पूर्वचर आदि कार्य हेतुमें अंतर्भूत नहीं होते। तथा यह भी सिद्ध हुआ कि कारण पूर्ववर्ती होता है एवं कारग कार्यमें कालका व्यवधान नहीं होता।
अब क्रमसे अविरुद्ध उपलब्धिरूप हेतुके छह भेदोंका वर्णन बाल बुद्धिवालोंको समझाने के लिये उदाहरण पूर्वक उपस्थित करते हैं। उनमें प्रथम क्रम प्राप्त व्याप्य हेतुको दिखलाते हैंपरिणामी शब्दः, कृतकत्वात्, य एवं स एवं दृष्टः यथा घटः, कृतकश्चायं तस्मात् परिणामी । यस्तु न परिणामी स न कृतकः यथा वंध्यास्तनंधयः कृत कश्चायं
तस्मात् परिणामी ।।६५॥ सूत्रार्थ-शब्द परिणामी है क्योंकि किया जाता है, जो इस तरहका होता है वह ऐसा ही रहता है जैसे घट, शब्द कृतक है अतः परिणामी है। जो परिणामी नहीं होता वह कृतक नहीं होता जैसे वंध्यास्त्रीका पुत्र, यह शब्द तो कृतक है इसलिए परिणामी होता है । अन्वय और व्यतिरेकके भेदसे दृष्टांत दो प्रकारका होता है ऐसा
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