________________
३८२
प्रमेयकमलमार्तण्डे मा भूदृष्टान्तस्यानुमानं प्रत्यंगत्वमुपनय निगमनयोस्तु स्यादित्याशंकापनोदार्थमाह
न च ते तदंगे साध्यधर्मिणि हेतुसाध्योर्वचनादेवाऽसंशयात् ॥४४॥
न च ते तदंगे साध्यमिरिण हेतुसाध्ययोर्वचनादेव हेतुसाध्यप्रतिपत्ती संशयाभावात् । तथापि दृष्टान्तादेरनुमानावयवत्वे हेतुरूपत्वे वा
समर्थनं वा वरं हेतुरूपमनुमानावयवोवास्तु साध्ये तदुपयोगात् ।।४५॥
समर्थनमेव वरं हेतु रूपमनुमानावयवो वास्तु साध्ये तस्योपयोगात्। समर्थनं हि नाम हेतोरसिद्धत्वादिदोष निराकृत्य स्वसाध्येनाऽविनाभावसाधनम् । साध्यं प्रति हेतोर्गमकत्वे च तस्यैवोपयोगो नान्यस्येति ।
ननु व्युत्पन्नप्रज्ञानां साध्यमिरिण हेतुसाध्ययोर्वचनादेवासंशयादर्थप्रतिपत्त ईष्टान्तादिवचनमनर्थकमस्तु । बालानां त्वव्युत्पन्नप्रज्ञानां व्युत्पत्त्यर्थं तन्नानर्थकमित्याह -
दृष्टांत अनुमानका अंग मत होवे किन्तु उपनय और निगमन तो उसके अंग होते हैं ? इसप्रकारकी आशंका होने पर उसको दूर करते हैं -
न च ते तदंगे साध्यमिणि हेतु साध्ययोर्वचनादेवाऽसंशयात् ।।४४।।
सूत्रार्थ-उपनय और निगमन भी अनुमानके अंग नहीं हैं क्योंकि साध्यधर्मी में साध्य और हेतुका कथन करनेसे ही तत्संबंधी संशय दूर हो जाता है । इसप्रकार संशय रहित साध्य सिद्धि संभावित होते हुए भी दृष्टांतादिको अनुमानका अंग माना जाय अथवा सपक्षसत्त्वादि हेतुका त्रिरूप माना जाय तो
समर्थनं वा वरं हेतुरूपमनुमानावयवो वास्तु साध्ये तदुपयोगात् ।।४।।
सूत्रार्थ हेतुरूप समर्थनको ही अनुमानका अवयव माना जाय, क्योंकि वह साध्यमें उपयोगी है। हेतुके असिद्धादि दोषको दूर करके स्वसाध्यके साथ उसका अविनाभाव स्थापित करना समर्थन कहलाता है । अथवा विपक्षमें साकल्यपनेसे बाधक प्रमाणका प्रदर्शन करना समर्थन है। साध्यके प्रति हेतुका गमकपना होने में समर्थन ही उपयोगी है अन्य नहीं ।
शंका-व्युत्पन्न प्रज्ञा वाले ( साध्य साधन संबंधी पूर्णज्ञान रखने वाले ) पुरुषोंको साध्यधर्मीमें हेतु और साध्यके कथन करनेसे ही संशयरहित अर्थकी प्रतिपत्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org