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अविनाभावादीनां लक्षणानि
तत्र साध्येनाविरुद्धस्य व्याप्यादेरुपलब्धिर्विधौ साध्ये षोढा भवति व्याप्य कार्यकारणपूर्वोत्तर
सहचरभेदात् ।
ननु कार्यकारणभावस्य कुतश्चित्प्रमारणादप्रसिद्धः कथं कार्यं कारणस्य तद्वा कार्यस्य गमकं स्यादित्यप्यास्तां तावद्विषयपरिच्छेदे सम्बन्धपरीक्षायां कार्यकारणतादिसम्बन्धस्य प्रसाधयिष्यमाणत्वात् ।
ननु प्रसिद्ध पि कार्यकारणभावे कार्यमेव काररणस्य गमकं तस्यैव तेनाविनाभावात्, न पुनः कारणं कार्यस्य तदभावात्; इत्यसङ्गतम् कार्याविनाभावितयाऽवधारितस्यानुमानकालप्राप्तस्य छत्राविशिष्ट कारणस्य छायादिकार्यानुमापकत्वेन सुप्रसिद्धत्वात् । न ह्यनुकूल मात्र मन्त्यक्षणप्राप्तं वा कारणं
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सूत्रार्थ—विधिरूप साध्यके रहने पर अविरुद्ध उपलब्धिरूप हेतुके छह भेद होते हैं व्याप्यविरुद्धोपलब्धिहेतु, कार्य प्रविरुद्ध उपलब्धिहेतु, कारणअविरुद्ध उपलब्धिहेतु, पूर्व चरविरुद्ध उपलब्धि हेतु, उत्तरचरप्रविरुद्ध उपलब्धि हेतु, सहचर अविरुद्ध उपलब्धि हेतु । साध्यके साथ जो प्रविरुद्धपने से उपलब्ध हो ऐसे हेतुके विधिरूप साध्यके रहने पर ये छह भेद संभावित हैं ।
बौद्ध - किसी प्रमाणसे कार्य कारणभाव सिद्ध नहीं होता प्रतः कार्य हेतु कारणरूप साध्यका गमक या कारण हेतु कार्यरूप साध्यका गमक किस प्रकार हो सकता है ?
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जैन - इस मंतव्यको अभी ऐसे ही रहने दीजिये आगे प्रमाणके विषयका वर्णन करनेवाले परिच्छेद में संबंधकी परीक्षा करते हुए कार्यकारण आदि संबंध को भले प्रकार से सिद्ध करने वाले हैं ।
बौद्ध कार्यकारण भाव सिद्ध हो जाय तो भी केवल कार्य ही कारणका गमक बन सकता है क्योंकि कार्य कारणके साथ प्रविनाभावी है, किन्तु कारण, कार्य के साथ अविनाभावी नहीं होनेसे उसका गमक नहीं बन सकता ?
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जैन - यह प्रसंगत है, जिस कारणका कार्याविनाभाव सुनिश्चित है ऐसे अनुमानकाल में उपस्थित हुए छत्रादि विशिष्ट कारण, छायाआदिरूप कार्य के अनुमापक हो रहे प्रसिद्ध ही है । हम जैन अनुकूलतारूप कारणमात्र को कारण हेतु नहीं मानते, न अंत्यक्षण प्राप्त कारणको कारण हेतु मानते हैं जिससे कि अविनाभावित्वकी
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