________________
अविनाभावादीनां लक्षणानि
३७७ कस्य समर्थन मिति चेत् ? पक्षस्याप्यन भिधाने क्व हेत्वादिः प्रवर्तताम् ? गम्यमाने प्रतिज्ञाविषये एवेति चेत्; गम्यमानस्य हेत्वादेरपि समर्थनमस्तु । गम्यमानस्यापि हेत्वादेर्मन्दमतिप्रतिपत्त्यर्थं वचने तदर्थमेव प्रतिज्ञावचनमप्यस्तु विशेषाभावात् । ततः साध्यप्रतिपत्तिमिच्छता हेतुप्रयोगवत्पक्षप्रयोगोप्यभ्युपगन्तव्यः । तद्द्वयस्यैवानुमानाङ्गत्वात्, इत्याह
एतद्वयमेवानुमानाङ्गम्, नोदाहरणम् ॥३७॥ ननु “पक्षहेतुदृष्टान्तोपनयनिगमनान्यवयवाः' [ न्यायसू० १।१।३२ (१) ] इत्यभिधानाद् दृष्टान्तादेरप्यनुमानाङ्गत्वसम्भवादेतद्वयमेवांगमित्ययुक्तमुक्तम् । प्रतिज्ञा ह्यागमः । हेतुरनुमानम्,
पादनादिरूपसे समर्थन करना तो आवश्यक नहीं रहा ? फिर तो पक्षप्रयोगको नहीं चाहने वाले पुरुषको हेतुको बिना कहे ही उसका समर्थन करना चाहिये ।
बौद्ध-हेतुका वचन या प्रयोग किये बिना किसका समर्थन करे ? जैन-तो पक्षका वचन न कहने पर हेतु आदि भी कहां पर प्रवृत्त होंगे ? बौद्ध--गम्यमान (ज्ञात हुए) प्रतिज्ञाके विषयमें ही हेतु आदि प्रवृत्त होते हैं। जैन-तो वैसे ही गम्यमान हेतु आदिका समर्थन करना चाहिए ।
बौद्ध-मंदमतिको समझाने के लिये गम्यमान हेतु प्रादिका भी कथन करना पड़ता है ?
जैन-इसीप्रकार प्रतिज्ञा प्रयोग भी मंदमतिको समझाने के लिये करना पड़ता है उभयत्र समान बात है, कोई विशेषता नहीं। अतः साध्यकी प्रतिपत्तिको चाहनेवाले पुरुषको हेतु प्रयोगके समान पक्षप्रयोग भी स्वीकार करना चाहिये । यही दो अनुमानके अंग हैं ऐसा अग्रिम सूत्रमें कहते हैं --
एतद् द्वयमेवानुमानांग नोदाहरणम् ॥३७।। सूत्रार्थ-पक्ष और हेतु ये दो ही अनुमानके अंग हैं, उदाहरण अनुमानका अंग नहीं है।
यहां पर नैयायिकादि परवादियोंका कहना है कि पक्ष, हेतु, दृष्टांत, उपनय, निगमन ये पांच अनुमानके अंग हैं, इनमें उदाहरणको भी अनुमानका अंग स्वीकार किया है अतः अनुमानके दो ही अंग मानना अयुक्त है। पक्ष आदि अंगोंका अर्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org