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अविनाभावादीनां लक्षणानि
साध्यधर्मिणि साधनधर्मावबोधनाय पक्षधर्मोपसंहारवत् ||३५||
तस्याऽवचनं साध्यसिद्धिप्रतिबन्धकत्वात् प्रयोजनाभावाद्वा ? तत्र प्रथमपक्षोऽयुक्तः, वादिना साध्याविनाभावनियमै कलक्षणेन हेतुना स्वपक्षसिद्धौ साधयितुं प्रस्तुतायां प्रतिज्ञाप्रयोगस्य तत्प्रतिबन्धकत्वाभावात् ततः प्रतिपक्षासिद्ध: । द्वितोयपक्षोप्ययुक्तः; तत्प्रयोगे प्रतिपाद्यप्रतिपत्तिविशेषस्य प्रयोजनस्य सद्भावात्, पक्षाऽप्रयोगे तु केषाञ्चिन्मन्दमतीनां प्रकृतार्थाप्रतिपत्तेः । ये तु तत्प्रयोगमन्तरेणापि प्रकृतार्थं प्रतिपद्यन्ते तान्प्रति तदप्रयोगोऽभीष्ट एव । " प्रयोगपरिपाटी तु प्रतिपाद्यानुरोधतः" I ] इत्यभिधानात् । ततो युक्तो गम्यमानस्याप्यस्य प्रयोगः, कथमन्यथा शास्त्रादावपि प्रतिज्ञाप्रयोगः स्यात् ? न हि शास्त्रे नियतकथायां प्रतिज्ञा नाभिधीयते - 'अग्निरत्र धूमात्, वृक्षोयं शिशपात्वात् '
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होता है कि यह अस्तित्वादि साध्यधर्म सर्वज्ञमें रहता है या सुखादिमें रहता है ? इत्यादि, इस संशयको दूर करनेके लिए ज्ञात होते हुए भी पक्षको कहना जरूरी है ।
साध्य धर्मिणि साधन धर्मावबोधनाय पक्ष धर्मोपसंहारवत् ।। ३५ ।।
सूत्रार्थ - जिसप्रकार साध्यधर्मी में साधनधर्मका अवबोध करानेके लिये पक्षधर्मका उपसंहार किया जाता है ।
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प्रतिवादीका पक्ष क्योंकि प्रतिपाद्य
बौद्ध पक्ष प्रयोग नहीं मानते सो उसके नहीं कहने में क्या कारण है, साध्यके सिद्धि में प्रतिबंधक होनेके कारण पक्षको नहीं कहते या प्रयोजन नहीं होने के कारण पक्षको नहीं कहते ? प्रथम पक्ष अयुक्त है, जब वादी साध्य विनाभावो नियम वाले हेतु द्वारा अपने पक्षको सिद्ध करने में प्रस्तुत होता है तब किया गया पक्षका प्रयोग साध्यकी सिद्धि में प्रतिबंधक हो नहीं सकता, क्योंकि उस पक्ष प्रयोगसे तो प्रसिद्ध हो जाता है ( खंडित होता है) द्वितीय विकल्प भी प्रयुक्त है, विषयकी प्रतिपत्ति (जानकारी) होना रूप विशेष प्रयोजन पक्ष प्रयोग सता है यदि पक्षका प्रयोग न किया जाय तो किन्ही मंदबुद्धि वालोंको प्रकृत अर्थका बोध नहीं हो सकता। हां यह बात जरूर है कि जो व्यक्ति पक्ष प्रयोगके विना भी प्रकृत अर्थको जान सकते हैं उनके लिये तो पक्षका प्रयोग नहीं करना अभीष्ट ही है । अनुमान प्रयोगकी परिपाटी तो प्रतिपाद्य ( शिष्यादि) के अनुसार हुआ करती है अतः गम्यमान ( ज्ञात) रहते हुए भी पक्षका प्रयोग करना चाहिये । यदि ऐसी बात नहीं होती तो शास्त्र के प्रारंभ में प्रतिज्ञा प्रयोग किस प्रकार होता ? शास्त्र में नियत कथाके
होने पर ही
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