________________
१८२
प्रमेयकमलमार्तण्डे साध्यते; तहि घटादौ सन्निवेशादेर्बुद्धिमत्पूर्वकत्वोपलम्भात्तन्वादीनामप्यतो बुद्धिमत्पूर्वकत्व सिद्धिः स्यात् । द्विचन्द्रादिप्रत्ययस्य निरालम्बनत्वोपलम्भाच्चाखिलप्रत्ययानां निरालम्बनत्वप्रसङ्गः स्यात् । अथ यादृशं बुद्धिमत्कारणव्याप्त सन्निवेशादि घटादौ दृष्ट तादृशस्य तन्वादिष्वभावान्नातस्तेषां तत्पूर्वकत्वसिद्धिः; तर्हि यादृशमौदारिकशरीरस्थितित्वमस्मदादौ तद्भुक्तिपूर्वकं दृष्ट तादृशस्य भगवत्परमौदारिकशरीर स्थितावभावान्नातस्तस्यास्तद्भुक्तिपूर्वकत्वसिद्धिः । यथा च प्रत्ययत्वाविशेषेपि कस्यचिन्निरालम्बनत्वमन्यस्यान्यत्वम्, तथा च तच्छरीरस्थितेस्तत्त्वाविशेषेपि निराहारत्व मितरच्चेष्यतामविशेषात् ।
सकता ऐसा सर्व सामान्य नियमको विशेषमें घटित किया जाय तो ईश्वर वादी नैया- . यिक आदिका कथन भी घटित होगा कि घटादि पदार्थोंका कर्ता कोई बुद्धिमान चेतन व्यक्ति होता है अतः सभी वृक्ष पर्वत पृथ्वी आदिका कर्ता भी बुद्धिमान चेतन व्यक्ति [ ईश्वर ] होना चाहिये [अर्थात् सृष्टिका रचयिता मानना चाहिये] इत्यादि । तथा शून्यवादीकी मान्यता है कि द्वि चन्द्रादिरूप प्रतिभास यदि विना आलंबनके [दो चंद्रके नहीं होते हुए भी दो चन्द्र दिखायी देना] होते हैं तो सभी प्रतिभास [ ज्ञान ] बिना आलंबनके होना चाहिये । बाह्य पदार्थकी सत्ता ही नहीं है सब शून्य रूप है इत्यादि । ये ईश्वरवादी तथा शून्यवादी भी पाप श्वेताम्बर के समान एक जगहका देखा गया धर्म सर्वत्र घटित करते हैं अतः यह सब सिद्धांतको भी स्वीकार करनेका प्रसंग पाता है।
शंका-ईश्वरवादी आदि एकांतमतीका कथन मान्य नहीं हो सकता क्योंकि जिसप्रकार की बुद्धिमान कारण पूर्वक रचना घटादिमें व्याप्त हुई दिखायी देती है उस प्रकारकी वृक्ष, पर्वत, पृथ्वी आदिमें दिखायी नहीं देती अतः इन वृक्षादि में बुद्धिमान कारणपना सिद्ध नहीं कर सकते।
समाधान-यही बात केवली भगवानके विषयमें हैं, जिसप्रकारका हमारा औदारिक शरीर है वह भोजन पूर्वक स्थित रहता है उसप्रकारका भगवानका परम औदारिक शरीर नहीं है, वह तो भोजनके अभावमें ही स्थित रहता है, अर्थात् हम जैसे सामान्य मनुष्योंके शरीरकी स्थिति भोजन पूर्वक होती है, वैसे भगवानके परमौदारिक शरीर की स्थिति नहीं है, अत: उनके शरीर स्थिति को भोजन पूर्वक सिद्ध नहीं कर सकते । जिसप्रकार प्रतिभासकी अपेक्षा समानता होते हुए भी किसी द्विचंद्रादि प्रतिभासको तो निरालंब मानते हैं और किसी घटादि के प्रतिभासको अवलंबन सहित मानते हैं, यही सिद्धांत शरीर स्थितिका है अर्थात् शरीर स्थितिपना समान होते हुए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org