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प्रमेयकमलमार्तण्डे व्याप्तिप्रतिपत्तावपि तन्निश्चयकालोपलब्धेनैव व्यापकेन व्याप्यस्य व्याप्तिः स्यात् तस्यैव तथा निश्चयात्, न तादृशस्य । तादृशस्यापि साध्यव्याप्तत्वग्रहणे तग्राहिणो विकल्पस्यागृहीतग्राहित्वं कथं न स्यात् ? यत्तु प्रत्यक्षेण क्वचित्प्रदेशे साध्यव्याप्तत्वेन प्रतिपन्नं ततस्तस्यानुमाने विशेषतो दृष्टानुमान स्यात्, अन्यदेशादिस्थसाध्येनास्याव्याप्तेः ।
पारिशेष्यात्तादृशेन व्यापकेनान्यत्र तादृशस्य व्याप्तिसिद्धिश्चेत्, ननु किमिदं पारिशेष्यम्प्रत्यक्षम्, अनुमानं वा ? न तावत्प्रत्यक्षम्; देशान्तरस्थस्यानुमेयस्य प्रत्यक्षेणाप्रतिपत्तः, अन्यथानुमानानर्थक्यानुषङ्गः। नाप्यनुमानम्; तत्राप्यनुमानान्तरेण व्याप्तिप्रतिपत्तावनवस्थाप्रसङ्गात्, तेनैव तत्प्रतिपत्तावन्योन्याश्रयः ।
__ एतेन साध्यसाधनयोः साकल्येनानुमानाद्व्याप्तिप्रतिपत्त स्तर्कस्याप्रामाण्य मिति प्रत्युक्तम् । तन्न प्रत्यक्षानुमानयोः साकल्येन व्याप्तिप्रतिपत्तो सामर्थ्यम् ।
__ शंका-अन्य देशादि के साध्य में उस प्रकार के व्यापक से व्याप्य की व्याप्ति तो पारिशेष्य रूप ज्ञान द्वारा हो जाया करती है ?
समाधान-अच्छा तो बताईये पारिशेष्य ज्ञान किसे कहते हैं प्रत्यक्ष को या अनुमान को ? प्रत्यक्ष को तो कह नहीं सकते, क्योंकि देशांतर में स्थित अनुमेय अर्थ की प्रत्यक्ष द्वारा प्रतिपत्ति होना असंभव है, यदि प्रत्यक्ष से ही उसकी प्रतिप्रत्ति होगी तो अनुमान प्रमाण मानना व्यर्थ ठहरता है । अनुमान को पारिशेष्य ज्ञान कहना भी ठीक नहीं क्योंकि उस पारिशेष्य रूप अनुमान की व्याप्ति को यदि अन्य अनुमान द्वारा ज्ञात होना स्वीकार करते हैं तो अनवस्था दूषण आता है और उसी अनुमान द्वारा ज्ञात होना स्वीकारते हैं तो अन्योन्याश्रय दूषण प्राप्त होता है। इस प्रकार यहां तक यह सिद्ध हुआ कि प्रत्यक्ष से व्याप्ति का ग्रहण नहीं होता है। इसी कथन से साध्य साधन की व्याप्ति साकल्य से अनुमान द्वारा गृहीत होती है अतः तर्क अप्रमाणभूत है ऐसा कहना भी खंडित हुआ समझना चाहिए। इसलिये यह निश्चय हुआ कि प्रत्यक्ष और अनुमान में पूर्णरूपेण व्याप्ति को ग्रहण करने की सामर्थ्य नहीं है।
शंका- हम जैसे सामान्य पुरुष संबंधी प्रत्यक्ष ज्ञान में व्याप्ति प्रतिपत्ति की सामर्थ्य भले ही न हो किन्तु योगीजनोंके प्रत्यक्ष ज्ञान में तो होती है ?
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