Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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पूर्ववदाद्यनुमानत्रैविध्यनिरासः तस्तत्सम्बन्धस्य प्रतिपत्त मशक्तः। ततोनुमानं तत्प्रभेदं चेच्छताऽविनाभाव एवैकं हेतोः प्रधानं लक्षणं प्रतिपत्तव्यम् ।
वहां अनुमान प्रयोग व्यर्थ ही है। सामान्यतोदृष्ट नामा अनुमान भी परिशेषानुमानके अंतर्गत हो सकता है, क्योंकि अगतिमत्व प्रसंगका प्रतिषेध करके ही देशांतर प्राप्तिरूप हेतुसे सूर्यकी गति सिद्ध की जाती है । अथवा सभी अनुमान सामान्यतोदृष्ट रूप ही हो सकते हैं, क्योंकि सर्वत्र अनुमानोंमें साध्यसाधनका संबंध सामान्यपनेसे ही ज्ञात रहता है, विशेष पनेसे उस संबंधको जानना तो अशक्य ही है। अतः अनुमान और उसके प्रभेदको चाहनेवाले आप यौगको हेतुका प्रधान लक्षण एक अविनाभाव ही है ( साध्याविनाभावित्व ) ऐसा स्वीकार करना होगा।
॥ समाप्त ।।
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