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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
विज्ञानैः तेषां तदविषयत्वात् । योगिप्रत्यक्षेण व्याप्तिप्रतिपत्तावनुमानवैयर्थ्यं मित्युक्तम् । गृहीतव्याप्तिस्य च प्रतिपादनानुपपत्तिरतिप्रसङ्गात् ।
मानसप्रत्यक्षाद्व्याप्तिप्रतिपत्तिरित्यन्ये; तेप्यतत्त्वज्ञाः; प्रत्यक्षस्येन्द्रियार्थसन्निकर्ष प्रभवत्वाभ्युपगमात् । अणुस्वभावमनसो युगपदशेषार्थैस्तत्सम्बन्धस्य च प्रागेव प्रतिविहितत्वात् कथं तत्प्रत्ययेनापि व्याप्तिप्रतिपत्तिः ?
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ननु साध्यसाधनधर्मयोः क्वचिद्व्यक्तिविशेषे प्रत्यक्षत एवं सम्बन्धप्रतिपत्तिः; इत्यप्ययुक्तम्; साकल्येन तत्प्रतिपत्त्यभावानुषङ्गात् । साध्यं च किमग्निसामान्यम्, अग्निविशेषः, अग्निसामान्यविशेषो वा ? न तावदग्निसामान्यम्; तदनुमाने सिद्धसाध्यतापत्त ेः, विशेषतोऽसिद्धेश्च ? नाप्यग्निविशेषः;
ऐसा माने तो असत् है, क्योंकि बिना व्याप्ति ज्ञानके परको समझाना अशक्य है, अन्यथा प्रतिप्रसंग होगा ।
मानस प्रत्यक्ष द्वारा व्याप्तिकी प्रतिपत्ति होती है ऐसा कोई प्रवादी कहते हैं वे भी तत्त्वज्ञ हैं, क्योंकि उनके यहां प्रत्यक्षको इन्द्रिय और पदार्थ के सन्निकर्ष से उत्पन्न होना स्वीकार किया है । तथा अणु स्वभाव वाले मनके द्वारा युगपत् संपूर्ण पदार्थों के संबंध होना असंभव है ऐसा पहले ही कह चुके हैं अतः मानस ज्ञान द्वारा व्याप्ति की प्रतिपत्ति किस प्रकार संभव हो सकती है ?
साध्य साधन धर्मों का संबंध प्रत्यक्ष से ही
शंका- किसी व्यक्ति विशेष में
जाना जाता है ?
समाधान
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- यह कथन प्रयुक्त है, प्रत्यक्ष द्वारा साध्य साधन की पूर्णरूपेण प्रतिपत्ति नहीं होती, प्रत्यक्ष में इस तरह की प्रतिपत्तिका अभाव ही है । तथा साध्य साधन का संबंध प्रत्यक्ष द्वारा जाना जाता है ऐसा माने तो उसमें साध्य किसको माना जाय अग्नि सामान्यको अग्नि विशेष को अथवा अग्नि सामान्य विशेष को ? अग्नि सामान्यको साध्य बनाना युक्त नहीं क्योंकि उसके अनुमान करने में सिद्धसाध्यता है तथा प्रत्यक्ष द्वारा व्याप्ति का ज्ञान होना माने तो देशादि विशेष से अग्नित्व सामान्य की सिद्धि नहीं हो सकती ।
भावार्थ – सर्वत्र साध्य साधन का अविनाभाव संबंध होता है इस प्रकार का व्याप्ति ज्ञान किस प्रमाण से होता है इस विषय में विविध मत हैं अनेक बौद्धादि प्रवादी अपनी मान्यता का समर्थन कर रहे हैं इसी बीच एक ने कहा कि साध्य साधन की
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