Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
३४४
प्रमेयकमलमार्तण्डे
हेत्वऽव्यापकस्य साधयितुमशक्तः। नाप्युभयम्; उभयदोषानतिवृत्तेः । नाप्यनुभयम्; तस्यासतो हेत्वव्यापकत्वेन साध्यत्वायोगात् ।
अनुयायी नहीं होनेसे हेतुमें अव्यापक है अतः उसको सिद्ध करना अशक्य है। उभयसामान्य और विशेषको साध्य बनावे तो उभय पक्षके दोष आयेंगे। अनुभय तो असत् रूप ही है वह हेतुमें किसीप्रकार भी व्याप्त नहीं हो सकता, अतः उसमें साध्यपनेका अयोग ही है । इसप्रकार हेतुके लक्षणमें विचार करनेपर निश्चय हो जाता है कि जो साध्यका अविनाभावी हो वही वास्तविक हेतु है अतः साध्याविनाभावित्व ही हेतुका लक्षण है, यौगाभिमत पांचरूप्य लक्षण असमीचीन है।
॥ समाप्त ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org