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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
यच्च तदुदाहरणम् -विवादापन्नं तनुकरणभुवनादिकं बुद्धिमद्ध ेतुकं कार्यत्वादिभ्यो घटादिवदित्युक्तम्, तदपीश्वरनिराकरणप्रकरणे विशेषतो दूषितमिति पुनर्न दूष्यते ।
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ग्रंथ "पूर्ववत् कारणात्कार्यानुमानम्, शेषवत् - कार्यात्कारणानुमानम्, सामान्यतो दृष्टम् - अकार्यकारणादकार्य कारणानुमानम् सामान्यतोऽविनाभावमात्रात् " [ न्यायभा०, वार्ति० १११।५ ] इति व्याख्यायते तदप्यविनाभाव नियम निश्चायकप्रमाणाभावादेवायुक्त परेषाम् । स्याद्वादिनां तु तद्युक्त तत्सद्भावात् इत्याचार्यः स्वयमेव कार्यकारणेत्यादिना हेतुप्रपञ्चे प्रपञ्चयिष्यति ।
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- पूर्ववत्पूर्वं लिंग लिंगिसम्बन्धस्य क्वचिन्निश्चयादन्यत्रप्रवर्त्तमानमनुमानम् । शेषवत्परिशेषानुमानम्, प्रसक्तप्रतिषेधे परिशिष्टस्य प्रतिपत्त ेः । सामान्यतो दृष्टं विशिष्टव्यक्तो सम्बन्धाग्रहणात्सा
केवलान्वयव्यतिरेकी अनुमानका उदाहरण था - - विवादग्रस्त शरीर, इंद्रियां पृथ्वी प्रादि पदार्थ बुद्धिमान निमित्तक हैं, क्योंकि कार्यरूप हैं, जैसे घटादि पदार्थ कार्यरूप होनेसे बुद्धिमान निमित्तक ( कुंभकारनिमित्तक) होते हैं, सो इस अनुमानको ईश्वरका निराकरण करते समय विशेषरूपसे सदोष सिद्ध कर चुके हैं अब यहां पुनः दूषित करना व्यर्थ है ।
यौग—कारणसे होनेवाले कार्यके अनुमानको "पूर्ववत्" अनुमान कहते हैं, तथा कार्य से होनेवाले कारणके अनुमानको 'शेषवत' - अनुमान कहते हैं एवं जो साध्य साधन कार्य कारणरूप नहीं है श्रन्यरूप है ऐसे कार्य कारण से होनेवाले कार्यकारणके अनुमानको 'सामान्यतोदृष्ट' अनुमान कहते हैं । इस प्रकार पूर्वोक्त अनुमानोंकी व्याख्या भी हमारे न्याय भाष्य में पायी जाती है ?
जैन - यह व्याख्या भी सिद्ध नहीं हो सकती, क्योंकि ग्राप परवादीके यहां अविनाभाव के नियमको निश्चित करनेवाला कोई भी प्रमाण नहीं है । किन्तु हम स्याद्वादी के यहां उक्त अनुमान सिद्ध हो जाते हैं, क्योंकि प्रविनाभाव नियमका निश्चय करानेवाला तर्क नामा प्रमाण हमारे यहां मौजूद है, इस विषयका आगे कार्यकारण आदि हेतु प्रकरण में सविस्तार प्रतिपादन स्वयं आचार्य करने वाले हैं ।
लिंग लिंगी संबंधका ( हेतु और साध्य के संबंधका ) कहीं पर निश्चय करने पर अन्य स्थानमें उस अनुमानकी प्रवृत्ति होना 'पूर्ववत् पूर्व' अनुमान कहलाता है । प्रसक्तका प्रतिषेध करके परिशिष्टकी प्रतिपत्ति जिससे होती है वह " शेषवत् परिशेष" अनुमान है । तथा विशिष्ट व्यक्ति में संबंधका ग्रहण नहीं होने से सामान्यसे उसका ग्रहण
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