Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
पूर्ववदाद्यनुमानत्रैविध्यनिरासः
३५३ तत: केवलान्वयित्वेनाभ्युपगतस्य विपक्षाभाव एव तुच्छो विपक्षः। ततः साध्यनिवृत्त्या साधन निवृत्तिश्चेति कथं न व्यतिरेकः ? अत एवाविनाभावस्य तत्परिज्ञानस्य च प्राणादिमत्त्ववद्भावाकिमन्वयेन ?
अथ विपक्षाभावस्यापादानत्वायोगान्न ततः साध्यसाधनयोावृत्तिः; तन्न; 'भावः प्रागभावादिभ्यो भिन्नस्ते वा परस्परतो भिन्नाः' इत्यादावप्यभावस्यापादानत्वाभावप्रसङ्गात् सर्वेषां सायं स्यात् ।
किंच, अन्वयो व्याप्तिरभिधीयते । सा च त्रिधा-बहिर्व्याप्तिः, साकल्यव्याप्तिः, अन्तर्व्याप्तिश्चेति । तत्र प्रथमव्याप्तौ भग्नघटव्यतिरिक्त सर्वं क्षणिकं सत्त्वात्कृतकत्त्वाद्वा तद्वत्, विवादापन्नाः प्रत्यया निरालम्बनाः प्रत्ययत्वात्स्वप्नप्रत्ययवत्, ईश्वरः किञ्चिज्ज्ञो रागादिमान्वा वक्तृत्वादिभ्यो रथ्या
प्रयोजन सधता है ? अर्थात् केवलान्वयी अनुमानमें व्यतिरेकके बिना साध्य सिद्धि की शक्ति नहीं होनेसे उसकी मान्यता व्यर्थ ही ठहरती है । उपरोक्त रीत्या यह भलीभांति सिद्ध होता है कि अविनाभाव अन्वयके साथ व्याप्त नहीं है। अतः केवलान्वयी अनुमानका पृथक्करण व्यर्थ है ।
___ यौग-विपक्षाभाव अपादान योग्य नहीं होने के कारण अर्थात् विपक्षात् व्यावृत्तिः विपक्षाभावः ऐसा विपक्षाभाव पदका अर्थ संभव नहीं, क्योंकि अभाव तुच्छ है इसलिये उससे साध्य साधनकी व्यावृत्ति होना शक्य नहीं ?
__ जैन-यह कथन अयुक्त है, सद्भाव प्रागभावादिसे भिन्न है अथवा प्रागभावादि आपस में भिन्न है इत्यादिरूप सिद्धांत अन्यथा असत्य साबित होगा। क्योंकि उसमें भी मानना होगा कि अभाव का अपादान शक्य नहीं है, और इस प्रकार अभाव अपादानके योग्य नहीं होनेसे सद्भाव और अभावरूप संपूर्ण पदार्थोंका सांकर्य हो जावेगा।
किञ्च, व्याप्तिको अन्वय कहते हैं, वह व्याप्ति तीन प्रकारकी है-बहिर्व्याप्ति साकल्यव्याप्ति और अन्तर्व्याप्ति । इन तीन व्याप्तियोंमें से अन्वयव्याप्तिका अर्थ बहिर्व्याप्ति किया जाय तो "भग्न घटके अतिरिक्त सभी पदार्थ क्षणिक हैं क्योंकि सब सत्त्वरूप हैं अन्यथा कृतक हैं, जैसे भग्न घट सत्त्वरूप था । विवादग्रस्त अखिलज्ञान निरालंब (विना पदार्थके) होते हैं क्योंकि वे ज्ञानरूप हैं जैसे स्वप्नका ज्ञान निरालंब होता है । ईश्वर अल्पज्ञ है, क्योंकि रागादिमान है अथवा बोलता है, जैसे रथ्यापुरुष
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org