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हेतोः पाञ्चरूप्यखण्डनम्
ह्यनुपलम्भः, संवादो वा स्यात् ? न तावदनुपलम्भः; सर्वात्मसम्बन्धिनोऽस्याऽसिद्धानकान्तिकत्वात् । नापि संवादः; प्रागनुमानप्रवृत्तेस्तस्यासिद्ध: । अनुमानोत्तरकालं तत्सिद्धयभ्युपगमे परस्पराश्रयःअनुमानात्प्रवृत्तौ संवादनिश्चयः, ततश्चाबाधितविषयत्वावगमेऽनुमानप्रवृत्तिरिति । न चाविनाभावनिश्चयादेवाबाधित विषयत्वनिश्चयः; हेतौ पंचरूपयोगिन्यऽविनाभावपरिसमाप्तिवादिनामबाधितविषयत्वाऽनिश्चये अविनाभाव निश्चयस्यैवासम्भवात् । तन्नकशाखाप्रभवत्वादेर्बाधित विषयत्वाद्ध त्वाभासत्वम् ।
है, अतः सर्वसंबंधी निश्चयका निमित्त असंभव है । सर्वसंबंधी निश्चय का निमित्त यदि माना जाय तो वह कौनसा होगा अनुपलभरूप या संवादरूप ? अनुपलंभ होना अशक्य है क्योंकि सर्वसंबंधी और स्वसंबंधी अनुपलंभ क्रमशः असिद्ध और अनैकांतिक है अर्थात् सर्वको अनुपलभ है ऐसा कहना सभीका जानना असंभव होनेसे प्रसिद्ध है तथा स्वसंबंधी अनुपलंभ तो अनैकान्तिक होता है-स्वको अनुपलंभ होने पर भी अन्य व्यक्तिको अनुपलंभ नहीं होता।
भावार्थ-अमुक वस्तुका अनुपलभ [अभाव] है ऐसा किसी एक व्यक्तिको निश्चय हो जाने पर भी जगतके यावन्मात्र व्यक्ति को ऐसा निश्चय नहीं होता न उन व्यक्तियों का निश्चय अनिश्चय हमें ज्ञात ही है अतः सर्व संबंधी अनुपलंभ द्वारा किसी का निश्चय करना या अमुक वस्तुका अभाव सिद्ध करना अशक्य है अतः केवल स्वको किसी वस्तु अनुपलंभ होना सर्वथा मान्य नहीं हो सकता और सर्व व्यक्तियोंका अनुपलंभ निश्चय जानना तो असंभव ही है ।
___ सर्वसंबंधी निश्चयका निमित्त संवाद है ऐसा पक्ष भी ठीक नहीं, अनुमान प्रवृत्तिके पहले संवादकी असिद्धि है, अनुमान प्रवृत्तिके उत्तर कालमें संवादकी सिद्धि स्वीकार करे तो परस्वराश्रय दोष होगा - अनुमानसे प्रवृत्ति होने पर संवादका निश्चय होगा और उसके होने पर अबाधित विषयत्वका ज्ञान होकर अनुमान प्रवृत्ति होगी। यदि कहा जाय कि अविनाभावके निश्चयसे ही अबाधित विषयत्वका निश्चय हो जाता है तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि पंचरूपयुक्त हेतुमें अविनाभावकी परिसमाप्ति मानने वाले पाप योगके यहां जब तक अबाधित विषयत्वका अनिश्चय है तब तक अविनाभावका निश्चय होना ही असंभव है। इस प्रकार बाधित विषयत्व होने के कारण एक शाखा प्रभत्वादि हेतु असत् है ऐसा कहना सिद्ध नहीं होता। उक्त हेतु तो साध्याविनाभावित्व के न होने के कारण हेत्वाभासके कोटिमें आते हैं ।
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