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तर्कस्वरूपविचारः
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समारोपव्यवच्छेदकत्वाच्चास्य प्रामाण्यमनुमानवत् ।
प्रमाणविषयपरिशोधकत्वान्नोहः प्रमाणम्; इत्यपि वार्तम्; प्रमाणविषयस्याप्रमाणेन परिशोधनविरोधात् मिथ्याज्ञानवत्प्रमेयार्थवच्च । प्रयोगः-प्रमाणं तर्कः प्रमाणविषयपरिशोधकत्वादनुमानादिवत् । यस्तु न प्रमाणं स न प्रमाणविषयपरिशोधकः यथा मिथ्याज्ञानं प्रमेयो वार्थः, प्रमाणविषयपरिशोधकश्चायम्, तस्मात्प्रमारणम् ।
तथा, प्रमाणं तर्कः प्रमाणानामनुग्राहकत्वात्, यत्प्रमाणानामनुग्राहकं तत्प्रमाणम् यथा प्रवचनानुग्राहकं प्रत्यक्षमनुमानं वा, प्रमाणानामनुग्राहकश्चायमिति । न चायमसिद्धो हेतुः, प्रमाणानुग्रहो हि प्रथमप्रमाणप्रतिपन्नार्थस्य प्रमाणान्तरेण तथैवावसायः, प्रतिपत्तिदाढय विधानात् । स
तर्क ज्ञान समारोपका [संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय] व्यवच्छेदक होने से प्रमाणभूत है, जैसे अनुमान ज्ञान समारोपका व्यवच्छेदक होने से प्रमाणभूत है ।
प्रमाण के विषय का परिशोधक होने से तर्क प्रमाणभूत नहीं है ऐसा कहना भी व्यर्थ है, प्रमाण के विषय का परिशोधक ज्ञान कभी अप्रमाणभूत हो ही नहीं सकता वह तो प्रमाण रूप ही होगा, अप्रमाणभूत ज्ञान में तो परिशोधकपने का अभाव ही है जैसे कि मिथ्याज्ञान में परिशोधकता नहीं है अथवा प्रमेयार्थ में परिशोधकता नहीं, अतः निश्चित होता है कि तर्क ज्ञान प्रमाणभूत है क्योंकि प्रमाण के विषयका परिशोधक है जैसे अनुमान ज्ञान परिशोधक है, जो स्वयं प्रमाणभूत नहीं होता वह प्रमाण के विषयका परिशोधक भी नहीं होता, जिस प्रकार मिथ्याज्ञान या प्रमेयभूत अर्थ परिशोधक नहीं है, यह तर्क ज्ञान प्रमाण के विषय का परिशोधक देखा जाता है अतः प्रमाणभूत है।
तर्क को प्रमाणभूत सिद्ध करने वाला अन्य अनुमान उपस्थित करते हैंतर्क ज्ञान प्रमाणभूत हैं क्योंकि वह प्रमाणोंका अनुग्राहक है, जो ज्ञान प्रमाणोंका अनुग्राहक होता है वह प्रमाणभूत होता है जैसे प्रवचनका [ आगमका ] अनुग्राहक प्रत्यक्ष अथवा अनुमान प्रमाणभूत होता है, तर्क प्रमाणोंका अनुग्राहक अवश्य है। इस अनुमानका अनुग्राहकत्व हेतु असिद्ध भी नहीं है क्योंकि प्रथम प्रमाण द्वारा ज्ञात हुए पदार्थको अन्य प्रमाण द्वारा वैसा ही निश्चय करना प्रमाणोंका अनुग्रह कहलाता है, यह अनुग्रह दृढ़ निश्चय के लिये हुप्रा करता है, ऐसा अनुग्राहकत्व तर्क ज्ञानमें अवश्य
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