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१२ हेतोः पाञ्चरूप्यखण्डनम्
Bigadagig
ननु त्रैरूप्यं हेतोर्लक्षणं मा भूत् 'पक्वान्येतानि फलान्येकशाखाप्रभवत्वादुपयुक्तफलवत्' इत्यादौ 'मूर्योयं देवदत्तस्तत्पुत्रत्वादितरतत्पुत्रवत्' इत्यादौ च तदाभासेपि तत्सम्भवात् । पंचरूपत्वं तु तल्लक्षणं युक्तमेवानवद्यत्वात्, एकशाखाप्रभवत्वस्याबाधितविषयत्वासम्भवाद् अात्मताग्राहिप्रत्यक्षेणैव तद्विषयस्य बाधितत्वात्, तत्पुत्रत्वादेश्चासत्प्रतिपक्षत्वाभावात् तत्प्रतिपक्षस्य शास्त्रव्याख्यानादिलिङ्गस्य सम्भवात् ।
यौग-बौद्धाभिमत हेतुका रूप्य लक्षण प्रसिद्ध है यह बात ठीक ही है, ये फल पक्व [पके] हैं क्योंकि एक शाखासे उत्पन्न हुए हैं, जैसे उपभुक्त फल उसी एक शाखा प्रभव होनेसे पक्व थे, इत्यादि अनुमानमें प्रयुक्त “एक शाखा प्रभवत्व" हेत सपक्ष सत्वादि त्रैरूप्यसे युक्त होते हुए भी हेत्वाभास है, तथा यह देवदत्त मुर्ख है, क्योंकि उसका पुत्र है, जैसे उसके अन्य पुत्र मुर्ख हैं। इत्यादि तत्पुत्रत्व हेतु भी बैरूप्य लक्षणके होते हुए भी हेत्वाभास स्वरूप है, अतः हेतुका त्रैरूप्य लक्षण सदोष है ।
भावार्थ - किसी व्यक्तिने वृक्षके एक शाखाके कुछ फलोंको खाकर अनुमान किया कि इस शाखाके सभी फल पके हैं, क्योंकि एक शाखा प्रभव है जैसे खाये हुए फल पके थे इत्यादि, इस एक शाखा प्रभवत्व नामा हेतुमें पक्ष धर्म आदि त्रैरूप्य मौजुद है-उक्त शाखाके फल पके होना संभावित है अतः पक्षधर्मत्व, भुक्त फलोंमें पक्वता होनेसे सपक्ष सत्त्व एवं अन्य शाखा प्रभव फल में पक्वताका अभाव संभावित होनेसे विपक्ष व्यावृत्ति है तो भी यह हेतु साध्यका गमक नहीं हो सकता, क्योंकि उस शाखाके फलोंको साक्षात् उपयुक्त करने पर दिखायी देता है कि कुछ फल अपक्व भी
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