Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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हेतोस्त्ररूप्यनिरासः
३२१ ननु चास्तु साधनात्साध्य विज्ञानमनुमानम्। तत्तु साधनं निश्चितपक्षधर्मत्वादिरूपत्रययुक्तम् । पक्षधर्मत्वं हि तस्यासिद्धत्वन्यवच्छेदार्थ लक्षणं निश्चीयते । सपक्ष एव सत्त्वं तु विरुद्धत्वव्यवच्छेदार्थम्। विपक्षे चासत्वमेव अनैकान्तिकत्वव्यवच्छित्तये । तदनिश्चये साधनस्यासिद्धत्वादिदोषत्रयपरिहारासम्भवात् । उक्तञ्च--
"हेतोस्त्रिष्वपि रूपेषु निर्णयस्तेन वर्णितः।
असिद्धविपरीतार्थव्यभिचारिविपक्षतः ॥" [प्रमाणवा० १११६] इत्याशङ्कयाह
___ साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः ।।१५।। असाधारणो हि स्वभावो भावस्य लक्षणमव्यभिचारादग्नेरौष्ण्यवत् । न च त्रैरूप्यस्यासाधारणता; हेतौ तदाभासे च तत्सम्भवात्पञ्चरूपत्वादिवत् । असिद्धत्वादिदोषपरिहारश्चास्य
बौद्ध-साधनसे होने वाले साध्यके ज्ञानको अनुमान प्रमाण कहते हैं यह अनुमान की व्याख्या तो सत्य है, किन्तु इसमें जो साधन (हेतु) होता है वह पक्ष धर्मत्व आदि तीन रूप संयुक्त होता है । पक्षधर्मत्व रूप हेतु का विशेषण उसके असिद्धत्व दोषका व्यवच्छेद करने के लिये प्रयुक्त किया है, सपक्ष में ही सत्त्व होना रूप लक्षण विरुद्धपने का व्यवच्छेद के लिये है, और विपक्ष में असत्त्व होना रूप लक्षण अनैकान्तिक दोषके परिहार के लिये है। यदि इन पक्ष धर्मादि का हेतु में रहना निश्चित न हो तो असिद्धादि तीन दोषोंका परिहार होना असंभव है। कहा भी हैहेतु के रूप्यका [पक्षधर्मत्व सपक्षत्त्व विपक्षव्यावृत्ति] निर्णय इसलिये करते हैं कि उससे प्रसिद्ध विरुद्ध और अनैकांतिक दोष नहीं पाते ।
इस बौद्ध के शंका का परिहार करते हुए हेतु के सही लक्षण का वर्णन करते हैं
___ साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः ।।१५।।
सूत्रार्थ-साध्यके साथ अविनाभावरूप से रहना जिसका निश्चित है उसको हेतु कहते हैं।
वस्तुका जो असाधारण स्वभाव होता है वह उसका लक्षण होता है, क्योंकि उस लक्षण में किसी प्रकार का व्यभिचार नहीं आता, जैसे अग्निका उष्णता स्वभाव असाधारण होनेसे उसका वह लक्षण व्यभिचार दोष रहित है। बौद्ध का पूर्वोक्त
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