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मोक्षस्वरूपविचारः
'आत्मैकत्वज्ञानात्' इत्यादिग्रन्थस्तु सिद्धसाध्यतया न समाधानमर्हति ।
कांत या गुणधर्म समूह पाया जाता है वह दो प्रकारका है क्रम अनेकांत और क्रम अनेकांत, प्रत्येक वस्तुमें क्रम प्रवाह रूपसे अवस्थायें अथवा पर्यायें ( हालतें ) प्रादुर्भूत होती रहती हैं उन्हें क्रम अनेकांत कहते हैं, जैसे मिट्टीरूप वस्तुमें घट, कपाल आदि अवस्थायें होती रहती हैं । उसी वस्तुमें युगपत् अनेक गुणधर्मोंका जो अस्तित्व दिखाई दे रहा है उन्हें अक्रम अनेकांत कहते हैं । इन्हीं क्रम ग्रक्रम अनेकांतको अन्यत्र पर्याय तथा गुण नामसे कहा है अर्थात् क्रम अनेकांत मायने पर्याय और अक्रम अनेकांत मायने गुण | गुण हो चाहे पर्याय दोनों ही एक एक नहीं है अपितु अनेक अनेक हैं इसीलिये गुणपर्याय युक्त वस्तुका सार्थक नाम 'अनेकांत' है । इस अनेकांत रूप वस्तुका सर्वांगीन युगपत् ज्ञान प्रमाण द्वारा [ सकल प्रत्यक्ष द्वारा ] होता है अतः यहां पर अनेकांत को प्रमाण परिच्छेद्य कहा है । वस्तुके एक एक गुणधर्मका ज्ञान नय द्वारा होता है अतः एकान्त नय परिच्छेद्य है । जो वस्तु प्रमाण द्वारा परिच्छेद्य है वह अवश्यमेव नय द्वारा भी परिच्छेद्य होती है इसीलिये अनेकांत के साथ एकान्त का अविनाभावीपना है । वस्तु के उक्त गुणधर्मों में नित्य अनित्य, सत् असत् यादि प्रतिपक्षी धर्म भी समाविष्ट है ऐसे प्रतिपक्षभूत धर्मों का सद्भाव एक ही वस्तुमें किस प्रकार हो सकता है ? ऐसी आशङ्का होने पर स्याद्वाद सप्तभंगीका अवतरण होता है कि ये नित्य अनित्य आदि धर्म भिन्न भिन्न अपेक्षाके साथ एकत्र वस्तुमें युगपत् संभावित हो जाते हैं अर्थात् स्यात् कथंचित् द्रव्यदृष्टिसे वस्तुमें नित्यता है, स्यात् पर्यायदृष्टि से अनित्यता है इत्यादि, इस स्याद्वादका विवरण आगे इसी ग्रन्थ में [तृतीय भाग में] होनेवाला है । प्रत्येक वस्तुमें यह स्याद्वाद प्रक्रिया अवश्यंभावी है, अतः परवादी की प्राशंका थी कि सभी में अनेकांत स्याद्वादका अस्तित्त्व है तो स्वयं अनेकान्तमें भी अनेकान्त होना ही चाहिये । इसका समाधान यह है कि जैन अनेकान्त में भी अनेकान्त मानते हैं; कैसे सो बताते हैं-अनेकान्त में स्यात् कथंचित् एकान्त है तथा स्यात् अनेकान्त है, एकान्त दो प्रकार का है सम्यग् एकान्त और मिथ्या एकान्त, वस्तु के एक देशको सापेक्ष ग्रहण करनेवाला सम्यग् एकान्त है और एक धर्मका सर्वथा अवधारण करके अन्य सब धर्मोका निराकरण करनेवाला मिथ्या एकान्त है, सम्यग् नयके विषयभूत सम्यग् एकांत का ही इस अनेकांतके स्याद्वादमें ग्रहण समझना, मिथ्या एकान्त तो काल्पनिक शून्यरूप वचन
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