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प्रमेयकमलमार्तण्डे गण्डादेावृत्तिहेतुत्वात् नाग्न्याविरोधित्वाच्च, वस्त्रे तु विपर्ययात्, परमनैर्ग्रन्थ्य सिद्ध्यर्थं पिच्छस्याप्यग्रहणाच्चौषधवत् । पिण्डौषध्यादयो हि सिद्धान्तानुसारेणोद्गमादिदोषरहिता रत्नत्रयाराधनहेतवो गृह्यमारणा न कस्यापि मोक्षहेतोः हन्तारः । न हि तद्ग्रहणे रागादयोऽन्तरङ्गा बहिरङ्गा वा स्वभूषावेषादयो ग्रन्था जायन्ते, अतस्ते मोक्षहेतोरुपकार एव । पिण्डग्रहणमन्तरेण ह्यपूर्णकाले पि विपत्तेरापत्तेरात्मघातित्वं स्यात्, न तु वस्त्रे । षष्ठाष्टमादिक्रमेण च मुमुक्षुभिः पिण्डोपि त्यज्यते, न तु स्त्रीभिः कदाचिद्वस्त्रम् ।
अथ वस्त्रादन्यस्याखिलस्य त्यागात्साकल्येनासां बाह्य नैर्ग्रन्थ्यम्; तहि लोभादन्यकषायत्यागादेवाबाह्यमपि स्यात् । न च गृहीते पि वस्त्रे ममेदम्भावस्याभावात्तदवतिष्ठते; विरोधात्
ठीक नहीं है, तीन चार पंखों का ग्रहण तो जीव रक्षा के लिए किया जाता है, तथा यह ममकार भाव का सूचक भी नहीं है। पके हुए फोड़ा फुन्सी आदि का प्रतिकारक होने से एवं नग्नता का अविरोधक होने से औषधि का ग्रहण होता है। किन्तु वस्त्र ग्रहण में ऐसी बात नहीं है । दूसरी बात यह है कि परम निर्ग्रन्थता की सिद्धि के लिये तो महाश्रमण पीछी भी ग्रहण नहीं करते हैं जिस प्रकार कि औषधि का ग्रहण नहीं करते हैं । सिद्धान्तानुसार उद्गम, उत्पादन आदि ४६ दोषों से रहित आहार औषधि आदि को ग्रहण करते हैं ये पदार्थ रत्नत्रय की आराधना के कारण हैं अतः मोक्षमार्ग में किसी के भी बाधक नहीं हैं। पीछी आदि ग्रहण करने से अंतरंग रागादि परिग्रह और बहिरंग वसन, भूषण आदि परिग्रह नहीं होते हैं, अतः ये पदार्थ परिग्रह नहीं हैं प्रत्युत मोक्ष के हेतु के उपकारक हैं । इसी का खुलासा करते हैं, साधु अाहार को ग्रहण नहीं करेगा तो अकाल में मरण होने से आत्मघाती कहलायेगा किन्तु वस्त्र में ऐसी बात नहीं है। समर्थ अभ्यासी साधु तो आहार को भी दो दिन तीन दिन आदि के क्रम से छोड़ देता है, किंतु स्त्रियों द्वारा वस्त्र नहीं छोड़ा जा सकता है ।
श्वेताम्बर -स्त्रियां वस्त्र को छोड़कर अन्य संपूर्ण परिग्रहों का त्याग कर लेती हैं, अतः उनको बाह्य में निर्ग्रन्थ ही मानना चाहिए ?
दिगम्बर जैन-ऐसी बात है तो लोभ कषाय को छोड़कर अन्य अभ्यंतर परिग्रह का त्याग होने से अन्तरंग में उन्हें निर्ग्रन्थ ही मानना चाहिए ? तुम कहो कि वस्त्र को ग्रहण करने पर भी ममत्व बुद्धि नहीं होने से निर्ग्रन्थता बनी रहेगी ? सो भी बात नहीं है, इस तरह के कथन में विरोध पाता है यदि बुद्धिपूर्वक अपनी इच्छा
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