Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे प्रत्यक्षादिनिमित्त यस्य, स्मृत्यादयो भेदा यस्य तथोक्तम् । तत्र स्मृतेस्तावत्संस्कारेत्यादिना कारणस्वरूपे निरूपयति
संस्कारोद्बोधनिबन्धना तदित्याकारा स्मृतिः ॥३।। संस्कारः सांव्यवहारिकप्रत्यक्षभेदो धारणा। तस्योद्बोधः प्रबोधः। स निबन्धनं यस्याः तदित्याकारो यस्याः सा तथोक्ता स्मृतिः। विनेयानां सुखावबोधार्थं दृष्टान्तद्वारेण तत्स्वरूपं निरूपयति
___यथा स देवदत्त इति ॥४॥ यथेत्युदाहरणप्रदर्शने । स देवदत्त इति । एवंप्रकारं तच्छब्दपरामृष्टं यद्विज्ञानं तत्सर्वं स्मृतिरित्यवगन्तव्यम् । न चासावप्रमाणं संवादकत्वात् । यत्संवादकं तत्प्रमाणं यथा प्रत्यक्षादि, संवादिका च स्मृतिः, तस्मात्प्रमाणम् ।
सुत्रार्थ-जिसमें प्रत्यक्ष प्रमाण आदिक निमित्त हैं वह परोक्ष प्रमाण है । इसके स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान, व पागम ऐसे पांच भेद हैं। अब इन भेदों का वर्णन करते हुए सबसे पहले स्मृति प्रमाण का कारण तथा स्वरूप बतलाते हैं
"संस्काराबोध निबंधना तदित्याकारा स्मृतिः" ।।३।।
सूत्रार्थ-जो ज्ञान संस्कार से होता है जिसमें “वह" इस प्रकार का आकार (प्रतिभास) रहता है वह स्मृति प्रमाण है। संस्कार का अर्थ धारणा ज्ञान है जो सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष का भेद है, उस धारणा ज्ञान का उद्बोध होना स्मृति है।
यहां पर शिष्यों को सरलता से समझ में आने के लिये दृष्टांत द्वारा स्मृति का स्वरूप बतलाते हैं--
“स: देवदत्तो यथा" ॥४॥ सूत्रार्थ-यथा “वह देवदत्त" इस प्रकार का प्रतिभास होना स्मृति है । सूत्र में “यथा" शब्द उदाहरण का प्रदर्शन करता है। "वह देवदत्त" इस प्रकार का तत् शब्द का परामर्श करने वाला जो ज्ञान है वह सब स्मृति रूप है ऐसा समझना । यह ज्ञान अप्रमाण नहीं है क्योंकि संवादक है। जो ज्ञान संवादक होता है वह प्रमाण है जैसे- प्रत्यक्षादि ज्ञान है । स्मृति भी संवादक है अत: प्रमाण है।
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