Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
३०२
प्रमेयकमलमार्तण्डे स्मृति और प्रत्यभिज्ञान की प्रमाणता का सारांश
बौद्ध-हम स्मृति को प्रमाण नहीं मानते हैं ज्ञान मात्र को स्मृति कहे तो प्रत्यक्षादि सभी ज्ञान स्मृति शब्द से कहे जायेंगे। अनुभूत पदार्थ को जानने वाले ज्ञान को स्मृति माने तो भी जिस किसी देवदत्त के द्वारा अनुभूत की गई वस्तु जिस किसी यज्ञदत्त आदि को याद आनी चाहिए क्योंकि वह अनुभूत तो हो चुकी ? यदि कहे कि जिसने अनुभव किया है वही याद करेगा सो भी ठीक नहीं, मेरा यह स्मरण अनुभूत में ही हो रहा है ऐसा कौन निर्णय कर सकता है ? प्रत्यक्ष तो नहीं कर सकता और स्मृति अभी प्रामाणिक सिद्ध नहीं हुई है ?
जैन-यह कथन ठीक नहीं है, ज्ञान मात्र को स्मृति नहीं कहते किन्तु "वह" इस प्रकार के प्रतिभास को स्मृति कहते हैं, "अनुभूत की याद आ रही है" इस बात का निर्णय तो खुद आत्मा करता है क्योंकि वही अनुभव और स्मरण इन दोनों अवस्था में व्यापक रहता है, आप लोग सभी वस्तु को क्षणिक मानते हैं अतः कुछ व्यवस्था नहीं दिखाई देती है, अनुभूत वस्तु को जानने वाली होने से स्मृति को गृहीत ग्राही भी नहीं मानना क्योंकि अनुभूत पदार्थ का जब साक्षात् अनुभव हुआ था तब वह भिन्न ही था
और अब वह सिर्फ यादगारी रूप है । तथा अनुभव किये हुए को जानने से स्मरण को अप्रमाण कहे तो अनुमान ज्ञान की सिद्धि नहीं होती, तथा प्रत्यक्ष भी अप्रमाणिक हो जायगा । जब कभी दूर से पर्वत पर धुआं देखकर अग्नि को जाना पुनः पहाड़ पर गये तो वही अग्नि प्रत्यक्ष होती है तो क्या उस प्रत्यक्ष को अप्रमाण कहेंगे ? अतीत विषय वाली होने से स्मृति को असत्य मानते हैं तो प्रत्यक्ष को भी असत्य मानना होगा, क्योंकि क्षणिकवादी के यहां पर जब ज्ञान होता है तब पदार्थ नहीं होता जब पदार्थ होता है तब ज्ञान नहीं होता, सबसे बड़ी आपत्ति तो यह है कि स्मृति को अप्रमाण मानने पर अनुमान की सिद्धि नहीं हो सकती।
बौद्ध आदि के प्रमाण की संख्या का विघटन करने वाला प्रत्यभिज्ञान भी एक पृथक् प्रमाण मौजूद है, इसको प्रत्यक्षादि में अंतर्भूत करना असम्भव है । प्रत्यभिज्ञान के एकत्व, सदृश, आदि विषय को न प्रत्यक्ष ग्रहण करता है और न स्मरण ही "यह वही है जिसको मैंने कल देखा था" इस ज्ञान में 'यह' इस प्रकार की झलक तो वर्तमान प्रत्यक्ष रूप है और "वही है" इस प्रकार की झलक अतीत स्मरण रूप है, इन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org