Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेय कमल मार्त्तण्डे
एवायं नखकेशादिः' इत्येकत्वपरामशिप्रत्यभिज्ञानं 'लूननख केशादिसदृशोयं पुनर्जातनखकेशादि:' इति सादृश्यनिबन्धनप्रत्यभिज्ञानान्तरेण बाध्यमानत्वादप्रमाणं प्रसिद्धम्, न पुनः साध्यय प्रत्यवमर्श तत्रास्याऽबाध्यमानतया प्रमाणत्वप्रसिद्धः । न चैकत्रैकत्वपरामर्शिप्रत्यभिज्ञानस्य मिथ्यात्वदर्शनात्सर्वत्रास्य मिथ्यात्वम्; प्रत्यक्षस्यापि सर्वत्र भ्रान्तत्वानुषङ्गान्न किञ्चित्कुतश्चित्कस्यचित्प्रसिद्धयेत् । ततो यथा शुक्ले शङ्ख पीताभासं प्रत्यक्षं तत्रैव शुक्लाभासप्रत्यक्षान्तरेण बाध्यमानत्वादप्रमाणम्, न पुनः पीते कनकादौ तथा प्रकृतमपीति ।
कथं च प्रत्यभिज्ञानविलोपेऽनुमानप्रवृत्तिः ? येनैव हि पूर्वधूमोनेहं ष्टस्तस्यैव पुनः पूर्वधूमसदृशधूमदर्शनादग्निप्रतिपत्तिर्युक्ता नान्यस्यान्यदर्शनात् । न च प्रत्यभिज्ञानमन्तरेण 'तेनेदं सदृशम्
ज्ञान सर्वत्र निर्विषय है अर्थात् इसका कोई विषय नहीं है, ऐसा भी नहीं कहना, क्योंकि क्षणिक एकांत की अनुपलब्धि है, यदि क्षणिक एकांत सिद्ध होता तो प्रत्यभिज्ञान को निर्विषयी मानते, जिस प्रकार एक चन्द्र के उपलब्ध होने पर द्विचन्द्र के ज्ञान को निर्विषयी मानते हैं । कटकर पुन: उत्पन्न हुए नख केशादि में वही यह नख केशादि है ऐसी प्रतीति कराने वाला एकत्व प्रत्यभिज्ञान, कटे हुए नख केश के समान यह पुन: उत्पन्न हुए नख केशादि हैं इस तरह के होने वाले सादृश्य प्रत्यभिज्ञान से बाधित होत है अतः अप्रमाण है किन्तु सादृश्य को विषय करने वाला प्रत्यभिज्ञान प्रमाण नहीं कहलाता, क्योंकि अबाध्यमान होने से उसके प्रामाण्य की प्रसिद्धि है । तथा एक जगह एकत्व के परामर्शी प्रत्यभिज्ञान में मिथ्यापना दिखायी देने से उसमें सर्वत्र मिथ्यापना मानना गलत है अन्यथा प्रत्यक्ष के भी सर्वत्र भ्रान्त होने का प्रसंग प्राप्त होगा फिर तो कोई भी वस्तु किसी भी प्रमाण से किसी के भी सिद्ध नहीं होगी । इस बड़े भारी दोष को दूर करने के लिये जैसे - सफेद शंख में पीताभास को करने वाला प्रत्यक्ष शुक्लाभास प्रत्यक्ष से बाधित होकर प्रमाण सिद्ध होता है और पीत सुवर्णादि में पीताभास बाधित न होकर प्रमाणभूत सिद्ध होता है वैसे ही प्रत्यभिज्ञान में बाधितपना और अबाधितपना होने से अप्रमाणपना और प्रमाणपना दोनों सिद्ध होते हैं ।
यदि एकत्व और सादृश्य को विषय करने वाले प्रत्यभिज्ञान का लोप करेंगे तो अनुमान प्रमाण की प्रवृत्ति किस प्रकार हो सकेगी ?
जिसने पूर्व में धूम को धूम सदृश धूम के देखने से अग्नि किसी वस्तु के देखने से ग्रग्नि का
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देखकर अग्नि को देखा है उसी पुरुष के पुनः पूर्व के का ज्ञान होना युक्त है, न कि अन्य व्यक्ति के अन्य ज्ञान होना युक्त है । प्रत्यभिज्ञान के बिना "यह
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