Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रत्यभिज्ञानप्रामाण्य विचारः
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नुमेयमात्रे प्रवृत्तिप्रसिद्धः । तस्य तद्विषये प्रवृत्तौ वा सर्वथा बाधकत्व विरोध.। ततः प्रमाणं प्रत्यभिज्ञा सकलबाधक रहितत्वात्प्रत्यक्षादिवत् ।
एतेनैव 'गोसदृशो गवयः' इत्यादि सादृश्यनिबन्धनं प्रत्यभिज्ञानं प्रमाणमावेदितं प्रतिपत्तव्यम्, तस्यापि स्वविषये बाधविधुरत्वस्य संवादकत्वस्य च प्रसिद्ध: ।
ननु सादृश्यस्यार्थेभ्यो भिन्नाभिन्नादिविकल्पैविचार्यमाणस्यायोगात्तद्विषयप्रत्यभिज्ञानस्य बाधविधुरत्वमविसंवादकत्वं चासिद्धम्; इत्यप्यास्तां तावत्, प्रत्यक्षादिप्रमारण विषयभूतत्वेनाबाधिततत्स्वरूपस्य सामान्य सिद्धिप्रक्रमे प्रतिपादयिष्यमारणत्वात् । न च तस्मिन्नेव स्वपुत्रादौ 'तादृशोयम्' इति प्रत्यभिज्ञानं सादृश्य निबन्धनं 'स एवायम्' इत्येकत्व निबन्धनप्रत्यभिज्ञानेन बाध्यमानमप्रमाणं
प्रत्यभिज्ञान के विषय में प्रवृत्ति नहीं होती, जो जिसके विषय में प्रवृत्त नहीं होता वह उसका साधक या बाधक नहीं होता है, जैसे रूप ज्ञान का बाधक रस ज्ञान नहीं होता, प्रत्यभिज्ञान के विषय में प्रत्यक्ष प्रवृत्ति नहीं करता, अतः उसका बाधक नहीं हो सकता । अनुमान प्रमाण भी बाधक नहीं है, क्योंकि वह भी प्रत्यभिज्ञान के विषय में प्रवृत्ति नहीं करता। अनुमान प्रमाण तो अपने अनुमेय (अग्नि आदि ) विषय में प्रवृत्ति करता है। प्रत्यभिज्ञान के विषय में अनुमान प्रवृत्त होता है, ऐसा कदाचित मान भी लेवें तो उसका बाधक तो सर्वथा नहीं हो सकता। अत: निश्चय हुग्रा कि प्रत्यभिज्ञान प्रमाणभूत है क्योंकि सम्पूर्ण बाधानों से रहित है, जैसे प्रत्यक्ष प्रमाण बाधा रहित है।
एकत्व प्रत्यभिज्ञान की सिद्धि होने से ही “गो के सदृश रोझ है" इत्यादि सादृश्य के कारण से होने वाला प्रत्यभिज्ञान भी सिद्ध होता है ऐसा समझना चाहिये, क्योंकि यह ज्ञान भी अपने विषय में बाधा रहित है तथा संवादक है ।
शंका-सादृश्य पदार्थों से भिन्न है कि अभिन्न इत्यादि विकल्पों से विचार के अयोग्य होने से उसको विषय करने वाले प्रत्यभिज्ञान का बाधा रहितपना एवं अविसंवादपना प्रसिद्ध है ?
समाधान-इस शंका का समाधान आगे करेंगे, प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों का विषय होने से उस सादृश्य का स्वरूप अबाधित है ऐसा पागे सामान्य सिद्धि प्रकरण में प्रतिपादन करने वाले हैं। उसी एक अपने पुत्र आदि में "वैसा है" इस प्रकार का
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