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स्त्रीमुक्तिविचार के खण्डन का सारांश स्त्री मक्ति विचार के खंडन का सारांश
पूर्वपक्ष - पुरुष के ही अनंत चतुष्टय गुणों का लाभ रूप मोक्ष हो ऐसा नहीं है, स्त्री के भी मोक्ष होता है, स्त्रियों के अनंत ज्ञानादि की प्राप्ति रूप मोक्ष का लाभ होता है, क्योंकि उनके अविकल कारणों का सद्भाव है। तथा आगम में स्त्री मुक्ति प्रतिपादक वाक्य मौजूद है
पुवेद वेदंता जे पुरिसा खवग सेढि मारूढा ।
सेसोदयेणवि तहा ज्ञाणुवजुत्ता य ते दु सिझंति ।।
अर्थात् पुरुषवेद का अनुभव करते हुए जो पुरुष क्षपक श्रेणी का आरोहण करते हैं तथा अन्य वेदों का अनुभव करते हुए जो जीव ध्यान युक्त होते हैं वे सिद्ध हो जाते हैं । स्त्री वस्त्र धारण करती है अतः उसके मुक्ति नहीं होती ऐसा भी नहीं कहना क्योंकि जिस प्रकार रागादि के अभाव में भी पीछी आदि धारण की जाती है वैसे ही स्त्रियां वस्त्र को धारण करती हैं, तथा शरीर की गर्मी से वायुकायिकादि जीवों का घात न हो इसलिये भी वस्त्र धारण किया जाता है इस प्रकार अनुमान, पागम और युक्ति से स्त्री के मुक्ति की सिद्धि हो जाती है ?
उत्तरपक्ष-यह श्वेताम्बर का मंतव्य ठीक नहीं है. सर्व प्रथम आपने अनुमान से स्त्री मुक्ति का जो समर्थन किया है वह ठीक नहीं है क्योंकि उसका अविकल कारणत्व हेतु प्रसिद्ध है, स्त्रियों के मुक्ति साधक संपूर्ण हेतु की प्राप्ति होना अशक्य है जैसे स्त्रियों के सातवें नरक जाने योग्य पुण्य का परम प्रकर्ष भी नहीं होता है, अतः हेतु असत् ठहरने से उस अनुमान के द्वारा स्त्री मुक्ति सिद्ध नहीं होती, स्त्रियां सातवें नरक नहीं जाती यह बात तो उभय प्रवादी को इष्ट है।
शंका-महिला सातवें नरक के योग्य पाप का प्रकर्ष न करें किंतु मोक्ष होवे तो क्या बाधा है ? मोक्ष हेतु का परम प्रकर्ष और सप्तम नरक हेतु का परम प्रकर्ष इनका कोई अविनाभाव नहीं है, यदि मानो तो सप्तम नरक को योग्यता रखने वाले सभी पुरुष मोक्ष जा सकेंगे तथा नपुसक भी मोक्ष जा सकेंगे ?
उत्तर-मोक्ष हेतु का प्रकर्ष और सप्तम नरक हेतु का प्रकर्ष इनमें विषम व्याप्ति है, जहां मोक्ष हेतु का प्रकर्ष है वहां नरक योग्य पाप के प्रकर्ष की योग्यता
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