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स्त्रीमुक्ति विचारः
२६७ 'बुद्धिपूर्वकं हि हस्तेन पतितवस्त्रमादाय परिदधानोपि तन्मूर्छारहितः' इति कश्चेतन: श्रद्दधीत ? तन्वीमाश्लिष्यतोपि तद्रहितत्वप्रसङ्गात् । ततो वस्त्रग्रहणे बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहप्राप्तेनैनन्थ्यद्वयासम्भवान्न स्त्रीणां मोक्षः । स हि बाह्याभ्यन्तरकारणजन्यः कार्यत्वान्माषपाकादिवत् । तच्च बाह्यमभ्यन्तरं च कारणमाकिञ्चन्यम्, तदभावे कथं स स्यात् ? इति परहेतोरसिद्ध र्नानुमानात् स्त्रीमुक्तिसिद्धिः। नाप्यागमात्; तन्मुक्तिप्रतिपादकस्यास्याभावात् ।
"पुवेदं वेदंता जे पुरिसा खवगसेढिमारूढा । सेसोदयेण वि तहा झाणुवजुत्ता य ते दु सिझंति ॥” [ ]
से स्वहस्त से वस्त्र को पहिनता है, गिरे वस्त्र को सम्हालता है, ठीक करता है, ठीक करके पुनः धारण करता है इत्यादि क्रिया करते हुए भी वह वस्त्र की इच्छा से रहित है, ऐसा कौन विश्वास कर सकता है ? यदि ऐसा माना जाय तो साधु स्त्री का
आलिंगन करता हुआ भी उसके ममत्व से रहित हैं, ऐसा मानना चाहिए ? अतः निश्चित होता है कि वस्त्र को ग्रहण करने से स्त्रियों को बाह्याभ्यंतर परिग्रह का दोष आता ही है इसलिये स्त्रियों के बाह्याभ्यंतर निर्ग्रन्थपना संभव नहीं होने से मोक्ष नहीं होता है। मोक्ष की प्राप्ति बाह्यकारण और अंतरंग कारण मिलने पर होती है, क्योंकि वह कार्य है, जिस प्रकार उड़द आदि धान्य बाह्याभ्यंतर अग्नि, स्वशक्ति आदि कारण के मिलने पर ही पकते हैं, मोक्ष का कारण तो बाह्य में आकिंचन रहना अर्थात् संपूर्ण वस्त्र, पात्र प्रादि से रहित होना है और अंतरंग आकिंचन्य रागादि से रहित होना है, ये दोनों आकिंचन्य धर्म स्त्रियों में नहीं हो सकते तो मोक्ष किस प्रकार हो सकता है ? अर्थात नहीं हो सकता है। इस प्रकार परवादी श्वेताम्बर का दिया हुआ "अविकल कारणत्वात्” हेतु प्रसिद्ध होने के कारण अनुमान द्वारा स्त्री मुक्ति सिद्ध नहीं होती है ।
आगम से भी स्त्री मुक्ति सिद्ध नहीं होती है क्योंकि स्त्री मुक्ति के प्रतिपादक आगम का अभाव है। पुरुषवेद का अनुभव करने वाले जो पुरुष हैं वे क्षपक श्रेणी पर आरूढ होकर ध्यान लीन होते हुए सिद्ध बन जाते हैं, तथा शेष स्त्रीवेद तथा नपुसक वेद वाले भी इसी प्रकार मोक्ष जाते हैं ।।१॥ यह जो आगम कथित गाथा है इससे भी स्त्रीमुक्ति का प्रतिपादन नहीं होता है, पुरुषवेद के समान अन्य वेदों के उदय होने पर भी पुरुष ही मोक्ष जाते हैं। दोनों जगह पुरुष का संबंध हैं, उदय होता है वह भाव का होता है न कि द्रव्य का ।
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