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स्त्रीमुक्तिविचारः
२६१ लक्षणमोक्षहेतुः स्यात् ? नियमेन च स्त्रीणामेव ऋद्धिविशेषहेतुः संयमो नेष्यते, न तु पुरुषाणाम् । यदि हि नियमेन लब्धिविशेषस्याजनकः संयमः क्वचिदन्यत्राविवादास्पदीभूते मोक्षहेतुः प्रसिद्ध्ये त् तदा तदृष्टान्तावष्टम्भेनात्राप्यसौ तथा प्रत्येतु शक्येत, नान्यथातिप्रसङ्गात् । संयममात्रं तु सदप्यासा न तद्ध'तुः तिर्यग्गृहस्था दिसंयमवत् ।
सचेलसंयमत्वाच्च नासौ तद्धतुर्गृहस्थसंयमवत् । न चायमसिद्धो हेतुः; न हि स्त्रीणां निर्वस्त्र: संयमो दृष्टः प्रवचनप्रतिपादितो वा। न च प्रवचनाभावेपि मोक्षसुखाकांक्षया तासां वस्त्रत्यागो युक्तः; अर्हत्प्रणीतागमोल्लंघनेन मिथ्यात्वाराधनाप्राप्त: । यदि पुनर्नृणामचेलोसौ तद्ध'तुः स्त्रीणां तु सचेलः; तहि कारणभेदान्मुक्त रप्यनुषज्येत भेदः स्वर्गादिवत् । देशसंयमिनश्चैवं मुक्तिः
जहां पर सांसारिक लब्धियां भी जिससे नहीं हो पाती वहां वह संयम सम्पूर्ण कर्मोका सदा के लिये नाश होने रूप मोक्षका कारण कैसे हो सकेगा ? स्त्रियोंके ऋद्धि का कारणभूत संयम नहीं होता किन्तु पुरुषों के विषय में ऐसा नियम नहीं है, उनके तो ऐसा संयम होता है, यदि नियम से लब्धिका अजनक संयम विवाद रहित किसी पुरुष विशेषमें मोक्ष का कारण होता हुप्रा उपलब्ध होता तो उस दृष्टान्तके बल से स्त्रियोंमें उसी रूपसे निश्चय करते किन्तु ऐसा नहीं है । तथा स्त्रियोंके मोक्ष होना मानेंगे तो गृहस्थके भी मुक्ति होनेका अतिप्रसंग पाता है। स्त्रियों के सामान्यतः संयम ( देश संयम.) तो है किन्तु वह संयम मोक्ष का कारण नहीं है, जैसे तिर्यंच का संयम या गृहस्थ का संयम मोक्षका कारण नहीं है ।
स्त्रियों के सवस्त्र संयम है अतः मोक्षका हेतु नहीं हैं जैसे गृहस्थ का संयम नहीं है। “सचेल संयमत्वात्" यह हेतु प्रसिद्ध नहीं है, क्योंकि स्त्रियों में वस्त्र रहित संयम कहीं पर देखा नहीं गया है, और न शास्त्र में ही उसका प्रतिपादन है। शास्त्रमें वस्त्र रहित संयम स्त्रियोंको नहीं बताया है तो भी मोक्ष सुखकी अभिलाषिणी स्त्रियां वस्त्रका त्याग करेगी तो गलत क्रिया कहलायेगी, क्योंकि अर्हन्त भगवानके शास्त्रका उल्लंघन करनेसे तो मिथ्यात्व हो जाता है। कोई कहे कि पुरुषके तो वस्त्र रहित संयम मोक्षका हेतु है, और स्त्रियोंके वस्त्र सहित संयम मोक्षका कारण है तो यह कथन ठीक नहीं है। जहां कारण भेद होता है वहां कार्य जो मुक्ति है उसमें भी भेद होवेगा, जैसे स्वर्गादिके कारणों में भेद होनेसे स्वर्ग जाने में भेद पड़ता है । तथा सवस्त्रके मुक्ति होती है तो देशसंयमीको हो सकेगी ? फिर तो दीक्षा लेना ही
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