Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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स्त्रीमुक्ति विचारः "पाचेलक्कुद्दे सिय सेज्जाहररायपिंडकिदिकम्म' [ जीतकल्प-भा० गा० १९७२ ] इत्यादेः पुरुष प्रति दश विधस्य स्थितिकल्पस्य मध्ये तदुपदेशात् ।
किञ्च, गृहीतेपि वस्त्रे जन्तूपघातस्तदवस्थः, तेनानावृतपाणिपादादिप्रदेशोष्मणा तदुपघातस्य परिहत्तु मशक्त: । वस्त्रस्य यूकालिक्षाद्यनेकजन्तुसम्मूर्च्छनाधिकरणत्वाच्च । तथाविधस्यापि स्वीकरणे मूर्द्ध जानां लुञ्चनादिक्रिया न स्यात् । वस्त्राकुञ्चनादेर्जातवातेनाकाशप्रदेशावस्थितजन्तूपपीडनाच्च व्यजनादिवातवत् ।
किञ्च, एवमनेक प्राण्युपघातनिवारणार्थमविहारोप्यनुष्ठे यो वस्त्रग्रहणवदविशेषात् । प्रयत्नेन गच्छतो जन्तूपघातेप्यहिंसा निश्च लेपि समा। यथा च यज्ञानुष्ठानं पशुहिंसाङ्गत्वेनाऽश्रेयस्करत्वात् त्याज्यं तथा वस्त्रग्रहणमप्यविशेषात् ।
गृहस्थ मुक्तिके पात्र होंगे ? किन्तु आचेलक्य आपको इष्ट न हो सो बात नहीं है। पाचेलक्य, प्रौद्देशिक, शय्याघर आदि दश प्रकारका स्थिति कल्प साधुओंके लिये आगममें बतलाया है, सो उसमें साधुका आचेलक्य गुण पाया है ।
आपने कहा कि संयमके लिये वस्त्र धारण किया जाता है, सो वस्त्र ग्रहण में भी जीवोंका घात तो होता ही है, वस्त्रसे नहीं ढके हुए ऐसे शरीरके अवयव हाथ पैर आदि की गरमीसे जीवोंका होने वाला घात रुक नहीं सकता है । तथा वस्त्र स्वयं जू, लिक्षा आदि अनेक सम्मूर्च्छन जीवोंका आधारभूत है, ऐसे वस्त्र को भी ग्रहण किया जाय तो केशोंका लोंच आदि क्रिया भी जरूरी नहीं रहेगी ? तथा वस्त्र को फैलाना, समेटना ग्रादि व्यापारसे वायु संचार होकर आकाश प्रदेशमें स्थित जीवोंका घात होता है, जैसे पंखा आदि से हवा करने में जीवों का घात होता है ।
दूसरी बात यह है कि यदि जीवों का बचाव करने के लिये वस्त्र ग्रहण करते हैं तो विहार में अनेक जीवोंका घात होता है अतः साधुको विहार नहीं करना चाहिये ? तुम कहो कि प्रयत्न पूर्वक ईर्या समितिसे विहार करने में जीवोंका घात होते हुए भी साधुको अहिंसक माना है, सो यही बात वस्त्र त्यागमें है अर्थात् वस्त्रका त्याग करने पर शरीर की गरमी से जीवोंका घात कभी भी हो जाय तो साधु प्रमाद रहित होने से अहिंसक कहलाता है । जैसे यज्ञानुष्ठान पशु हिंसाका कारण होनेसे अकल्याणकारो होनेसे त्याज्य है, वैसे वस्त्र भी हिंसाका कारण होनेसे त्यागने योग्य है, दोनों में समानता है।
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