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मोक्षस्वरूपविचार का सारांश
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जैन अनेकान्तकी भावनासे विशिष्ट जगह पर अक्षय ज्ञानरूप शरीर आदि की प्राप्ति होनेको मोक्ष कहते हैं, वह भी अयुक्त है, अनेकान्त ज्ञान ही मिथ्या है क्योंकि उसमें विरोधादि दोष आते हैं।
इसी प्रकार ब्रह्मवादी का परमात्मा में लीन होना रूप मोक्ष भी असिद्ध है, क्योंकि उनके यहां सभी वस्तु ब्रह्मरूप हैं अतः कौन किसमें लीन होगा । सांख्य प्रकृति और पुरुषमें विवेक होना मोक्ष है ऐसा कहते हैं वह भी ठीक नहीं, मोक्षके लिये पुरुषार्थ प्रधान करे और उसका लाभ पुरुष भोगे, ऐसा सिद्ध नहीं होता । इस प्रकार सभी परवादीके मोक्षका लक्षण सत्य नहीं है ।
उत्तर पक्ष-वैशेषिकने मोक्षके विषयमें सब मतका खण्डन कर अपना पक्ष सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है किन्तु उसमें वे सफल नहीं हुए, क्योंकि उनके स्वयं के मोक्षका लक्षण भी असम्भव है । बुद्धि आदि गुणोंका नाश सिद्ध करने के लिये दिया हुआ हेतु सदोष है, क्योंकि किसी भी वस्तुका सर्वथा उच्छेद नहीं देखा गया है, दीप की सन्तान भी सर्वथा नष्ट नहीं होती किन्तु प्रकाश अवस्थाको छोड़कर अन्धकार रूप होती है। बुद्धि आदि गुणोंका सर्वथा नाश होगा तो गुणी आत्मा भी नष्ट हो जायगा। आपने कहा कि तत्त्वज्ञानसे विपरीत ज्ञानका नाश होता है फिर क्रमसे धर्मादिका नाश होता है अतः तत्त्व ज्ञान मोक्षका कारण है सो उस पर हमारा कहना है कि यद्यपि तत्त्वज्ञान, धर्मादिको नष्ट करता है तो भी अतीन्द्रिय ज्ञान, सुख' इत्यादि गुणोंको नष्ट नहीं कर सकता है । आपने उदाहरण दिया कि जैसे रोगी बिना इच्छाके औषधि का सेवन करता है वैसे योगीजन बिना इच्छा के कर्म से प्राप्त उपभोग को करते हैं सो यह दृष्टान्त गलत है रोगी भी निरोग होने की इच्छा से औषधि सेवन करता है।
वेदान्तीके आनन्द स्वरूप मोक्षका खण्डन किया था सो क्या मोक्षमें आनंद नहीं रहता तो शोक विषाद रहता है ?. अर्थात् नहीं। हां वेदान्तीका नित्य एक कूटस्थ रूप जो अानन्द है वह ठीक नहीं है। वेदान्ती कहे कि आनन्दको अनित्य मानेंगे तो उसके उत्पत्तिका कारण भी मानना होगा सो कर्मोंका नाश होना रूप कारण अनंत सुख रूप आनन्दको उत्पन्न करता है ऐसा जैन ने माना है। विशुद्ध ज्ञानकी उत्पत्ति होना मोक्ष है ऐसा बौद्धका कथन भी कुछ ठीक है किन्तु बौद्धको जिसमें विशुद्ध ज्ञान
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