________________
NDJaag:23B
८
स्त्रीमुक्तिविचारः ÖReliek:8::88:8:6:888:888:888:8888:8:5
D
ननु पुस एवानन्तज्ञानादिस्वरूपलाभलक्षणो मोक्ष इत्ययुक्तम्; स्त्रीणामप्यस्योपपत्तः । तथाहि-अस्ति स्त्रीणां मोक्षोऽविकलकारणत्वात् पुरुषवत्; तदसत्; हेतोरसिद्धः, तथाहि-मोक्षहेतुर्तानादिपरमप्रकर्षः खीषु नास्ति परमप्रकर्षत्वात् सप्तमपृथ्वीगमनकारणापुण्यपरमप्रकर्षवत् । यदि नाम तत्र तत्कारणापुण्यपरमप्रकर्षाभावो मोक्षहेतोः परमप्रकर्षाभावे किमायातम् ? कार्यकारणव्याप्यव्यापकभावाभावे हि तयोः कथमन्यस्याभावेऽन्यस्याभावोऽतिप्रसङ्गात् इति चेत्; सत्यम्; अयं हि तावन्नि
श्वेताम्बर-अभी सांख्य मतके मुक्तिका खण्डन करते हुए जैन ने कहा था कि अनन्त ज्ञानादि चतुष्टय रूप मोक्ष पुरुषके ही होता है, सो ऐसा आग्रह ठीक नहीं है, मोक्ष तो स्त्रियों को भी होता है, इसीको अनुमानसे सिद्ध करते हैं कि स्त्रियोंको मोक्ष होता है, क्योंकि मोक्षके अविकल कारण उनके भी होते हैं, जैसे पुरुष के होते हैं ?
दिगम्बर-यह कथन अयुक्त है, "अविकल कारणत्वात्" हेतु प्रसिद्ध है, कैसे सो बताते हैं, मोक्ष के कारणभूत जो ज्ञानादि गुण हैं उनका परम प्रकर्ष स्त्रियोंमें नहीं होता है, क्योंकि वह परम प्रकर्षरूप है, जैसे सप्तम पृथ्वीमें जाने के कारणभूत पापका परम प्रकर्ष स्त्रियोंमें नहीं पाया जाता है।
श्वेताम्बर-नरक का कारण पापकर्म का परम प्रकर्ष स्त्रियोंमें नहीं होता तो उससे मोक्षके कारणका परम प्रकर्ष होने में क्या बाधा पायी ? जिससे उसके प्रभाव में मोक्ष कारण का भी अभाव माना जाय ? मोक्ष के कारणभूत ज्ञानादि का परम प्रकर्ष और नरकके कारणभूत पापका परमप्रकर्ष इन दोनोंमें कारण कार्यभाव या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org