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मोक्षस्वरूप विचारः
२४५ सुषुप्तादौ चाद्यः प्राणादिः कुतो जायताम् ? जाग्रद्विज्ञानसहकारिणोजाग्रत्प्राणादेरिति चेत्; न; एकस्माज्जाग्रद्विज्ञानादनन्तरभावीप्राणादिः कालान्तरभावि च प्रबोधज्ञानमित्यस्यासम्भाव्यमानत्वात् । न ह्य कस्मात्सामग्री विशेषात् क्रमभाविकार्यद्वयसम्भवो नाम, अन्यथा नित्यादप्यक्रमाक्रमवकार्योत्पत्तिप्रसङ्गः । तथाच “नाऽक्रमात्क्रमिणो भावाः" [ प्रमाणवा० ११४५ ] इत्यस्य विरोधः । तस्मात्तत्कालभाविन एव ज्ञानात् प्राणादिप्रभवोऽभ्युपगन्तव्यः । तत्कथं तत्र ज्ञानाभावसिद्धिः ?
स्वापसुखसंवेदनं चात्र सुप्रतीतम्-'सुखमहमस्वापम्' इत्युत्तरकालं तत्प्रतीत्यन्यथानुपपत्तेः । न ह्यननुभूते वस्तुनि स्मरणं प्रत्यभिज्ञानं चोपपद्यते । न च तदा स्वापसुखनिरूपणाभावात्तत्संवेदना
सुप्त दशामें प्राणापान आदि प्राणादिप्रभव होते हैं ऐसा परवादी मानते हैं इस मान्यतामें प्रश्न होता है कि सुप्तादि दशामें शुरुका प्राणापान किससे उत्पन्न होगा ? जाग्रद् दशाके ज्ञानके साथ रहने वाले जाग्रद् प्राणादिसे उक्त प्राणापान उत्पन्न होता है ऐसा कहो तो युक्त नहीं, एक ही जाग्रद् ज्ञानसे अनंतर भावी प्राणादि और कालांतरभावी प्रबोधज्ञान इसतरह दो कार्योंका होना असंभव है, क्योंकि एक सामग्री विशेषसे क्रमभावी दो कार्यों की उत्पत्ति नहीं होती, अन्यथा नित्य एवं अक्रमवर्ती कारणसे भी क्रमिक कार्यकी उत्पत्ति होनेका प्रसंग प्राप्त होगा, और ऐसा स्वीकार करनेपर "ग्रक्रमभूत कारणसे क्रमवर्ती पदार्थ उत्पन्न नहीं हो सकता" ऐसा बौद्धाभिमत प्रमाण वात्तिक
थका कथन विरुद्ध हो जायगा । इसलिये सुप्तादि दशामें तत्कालभावी ज्ञानसे ही प्राणादिकी उत्पत्ति होती है ऐसा स्वीकार करना चाहिये । अतः सुप्तादि अवस्थामें ज्ञानका अभाव कैसे सिद्ध हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता। .
दूसरी बात यह है कि सुप्तादि दशामें निद्रा सम्बन्धी सुखका संवेदन होता है "मैं सुख पूर्वक सोया था” इसप्रकार उत्तर कालमें होनेवाली प्रतीति की अन्यथानुपपत्तिसे ही ज्ञात होता है कि सुप्त दशामें संवेदनका अस्तित्व था। क्योंकि जिसका अनुभव नहीं हुआ है ऐसे वस्तुमें स्मृति और प्रत्यभिज्ञान उत्पन्न नहीं होता है। सुप्त दशाके समय निद्रा सुखका निरूपण नहीं होनेसे उस संवेदनका अभाव है ऐसा कहना भी अयुक्त है, उसी दिन जन्मे हुए बालक के मुखमें प्रक्षिप्त स्तनके दूधके पीनेसे उत्पन्न
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