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मोक्षस्वरूप विचारः
प्रत्यक्षस्याभ्रान्तत्व विशेषरणमसम्भाव्यमेव स्यात् । समर्थयिष्यते च प्रत्यभिज्ञानप्रत्ययस्यानारोपितार्थ ग्राहकत्वमभ्रान्तत्वं च । तन्न कत्वाभावः । अनुभूयमानस्यापि चैकत्वस्यानेकत्वेन विरोधे ग्राह्यग्राहकसंवित्तिलक्षण विरुद्धरूपत्रयाध्यासितज्ञानस्य, अर्थस्वलक्षणस्य चैकदा स्वपरकार्य कर्तृत्वाकर्तृ स्वलक्षणविरुद्धधर्मद्वयाध्यासितस्य एकत्व विरोधः स्यात् ।
प्रत्यभिज्ञानको भ्रांत माननेपर सभी प्रत्यक्षज्ञानको भी भ्रांत माननेका प्रसंग आता है, क्योंकि सभी प्रत्यक्ष प्रमाण बाह्य अभ्यंतर पदार्थों [ चेतन अचेतन ] में एकत्व ग्रहण द्वारा ही प्रवृत्त होते हुए प्रतीतिमें प्रा रहे हैं । इसप्रकार प्रत्यभिज्ञानके समान प्रत्यक्षज्ञान भी एकत्वको विषय करनेवाला सिद्ध होता है अतः उस प्रत्यक्षका अभ्रांतत्व विशेषण [ कल्पनापोढं प्रभ्रांतं - प्रत्यक्षम् ] प्रसिद्ध हो जाता है । प्रत्यभिज्ञान वास्तविक पदार्थका ग्राहक है एवं अभ्रांत है ऐसा हम जैन आगे सिद्ध करनेवाले हैं, अतः आत्मादि पदार्थों के एकत्वधर्मका प्रभाव करना असंभव है । दूसरी बात यह है कि एकत्वका साक्षात् अनुभव न होते हुए भी सुखदुःखादि अनेक धर्मोके साथ उसका रहना विरुद्ध माना जाय तो बौद्ध संमत ग्राह्य ग्राहक और संवित्ति [ पदार्थ ज्ञान एवं उसकी प्रतीति ] इन तीन विरुद्ध धर्मोका ज्ञापन करानेवाले ज्ञानमें एकत्व मानना विरुद्ध होगा, तथा एक नीलादि स्वलक्षणभूत पदार्थ में एक ही कालमें स्वकार्य के प्रति कर्तृत्व और परकार्य के प्रति कर्तृत्व ऐसे विरुद्ध दो धर्मोका अस्तित्व स्वीकार किया है उसमें विरोध होगा ।
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विशेषार्थ - बौद्धका कहना था कि प्रत्यभिज्ञान एकत्वको विषय करता है अतः प्रसमीचीन है, क्योंकि वस्तुमें अनेक धर्म होनेसे वह अनेक रूप है, किन्तु प्रत्यभिज्ञान उन अनेक धर्मो में भी एकपनेका बोध कराता है अर्थात् श्रात्मा सुखक्षण, दुःखक्षण आदि अनेक धर्मरूप है उन सब धर्मों में प्रतिक्षणकी आत्मा पृथक् होते हुए भी प्रत्यभिज्ञान सबमें एकत्वकी प्रतीति कराता है, अतः असत् है, इस कथनका जैनने उन्हींका सिद्धांत लेकर निरसन किया कि आपके यहां ज्ञानक्षण और अर्थक्षण ऐसे दो वस्तुभूत पदार्थ माने हैं, ग्राह्य - जानने योग्य पदार्थ, ग्राहकज्ञान और संवित्ति इनका वेदन ये तीन धर्म एक ही ज्ञान में संवेदित होते हैं, सो विरुद्ध तीन धर्मोका एकत्व अनुभवत करानेवाला ज्ञान प्रत्यभिज्ञानके समान किसप्रकार विरोधको प्राप्त नहीं होगा ? अवश्य होगा । तथा नील स्वलक्षण पीत स्वलक्षण आदि अर्थक्षणके भेद हैं एक नील स्वलक्षण
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