Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे पक्षे कथं सुषुप्ताद्यवस्थायां सर्वथा ज्ञानाभावः? अथ जाग्रत्प्रबोधकालभाविज्ञानाभ्यामन्तराले ज्ञानाभावोऽवसीयते; ननु तद्दशाभाविज्ञानयोः सुषुप्ताद्यवस्थाभाविज्ञानं नोपलब्धिलक्षणप्राप्तम्, तत्कथं ताभ्यां तदभावोऽवसीयेत? अन्यथाऽदृष्टस्यापि परलोकादेरभावोऽध्यक्षत एव स्यात् । तथा च "प्रमाणेतरसामान्यस्थितेः” [ ] इत्याद्यऽसङ्गतम् ।
नापि पार्श्वस्थोन्यस्तत्र तदभावं प्रतिपद्यते; कारणस्वभावव्यापकानुपलब्धेविरुद्धविधेर्वा
.... सुप्त दशाके ज्ञानाभावको ज्ञानांतर जानता है ऐसा तीसरा विकल्प कहो तो वह ज्ञानांतर कौनसा है तत्कालभावी है या जाग्रद् प्रबोध कालभावी है ? प्रथमपक्ष माने तो सुप्तादिदशामें सर्वथा ज्ञानका अभाव है ऐसी मान्यता किसप्रकार सिद्ध होगी? दूसरापक्ष-जाग्रत प्रबोध कालभावी अर्थात् जाग्रद्दशाका ज्ञान और प्रबोधदशा-शयनानंतर अवस्थाका ज्ञान इन दोनों ज्ञानोंसे अंतरालमें ज्ञानका अभाव था ऐसा जाना जाता है इसतरह माने तो भी ठीक नहीं, क्योंकि सुप्तादि दशाका ज्ञान उपलब्ध होने योग्य [इन्द्रिय द्वारा ग्रहण करने योग्य] नहीं है अतः जाग्रत् एवं प्रबोध दशावाले ज्ञानों द्वारा उस ज्ञानके अभावको जानना किसप्रकार शक्य है ? जो उपलब्ध होने योग्य नहीं है ऐसे पदार्थके अभावको भी यदि प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा जाना जा सकता है तो अदृष्टभूत परलोक आदिका अभाव भी प्रत्यक्ष द्वारा हो जायगा, फिर निम्न कारिकांश असंगत होवेगा कि प्रमाण और अप्रमाण की व्यवस्था होनेसे, अन्यकी बुद्धि का ज्ञान होनेसे तथा किसी का अभाव किया जा सकनेसे प्रत्यक्षसे भिन्न प्रमाणांतरका अस्तित्व सिद्ध होता है । इस कारिकासे यह सिद्ध होता है कि किसीका अभाव ज्ञात करना प्रत्यक्ष द्वारा न होकर अनुमानादि अन्य प्रमाण द्वारा होता है । विशेषार्थ-प्रमाणेतर सामान्य स्थिते रन्यधियो गतेः ।
प्रमाणांतर सद्भावः प्रतिषेधाच्च कस्यचित् ।।१।। यह कारिका चार्वाकके एक प्रत्यक्ष प्रमाणवादका निरसन करने हेतु बौद्ध प्रथमें आयी है इसका अर्थ-प्रमाण और अप्रमाणकी व्यवस्था, अन्यके बुद्धिका अवगम एवं किसीका प्रतिषेध प्रत्यक्ष द्वारा न होकर प्रमाणांतरसे होता है अतः उस प्रमाणांतर का सद्भाव मानना आवश्यक है । जो पदार्थ अनुपलब्धि लक्षण वाले हैं उनको जानना तथा किसी वस्तुके अभावको जानना प्रत्यक्षके [इन्द्रिय प्रत्यक्षके] वशकी बात नहीं है, अत: सुप्त आदि दशामें ज्ञानका अभाव था ऐसा जानना जाग्रत् एवं प्रबोध दशाके
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