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कवलाहारविचारः
१८५ अथोच्यते-वेदनीयकर्मणः सद्भावात्तत्सिद्धिः; तथाहि-भगवति वेदनीयं स्वफलदायि कर्मत्वादायुःकर्मवत्; तदप्युक्तिमात्रम्; यतोऽतोप्यनुमानात्तत्फलमात्र सिध्येन्न पुनर्भुक्तिलक्षणम् । अथ क्षुदादिनिमित्तवेदनीयसद्भावाद्भुक्तिसिद्धिः; ननु तनिमित्त तत्तत्रास्तीति कुतः? क्षुदादिफलाच्चेदन्योन्याश्रयः-सिद्ध हि भगवति तन्निमित्तकर्म सद्भावे तत्फल सिद्धिः, तस्याश्च तग्निमित्तकर्मसद्भावसिद्धिरिति ।
अथाऽसातवेदनीयोदयात्तत्र तत्सिद्धिः; न; सामर्थ्यवैकल्यात् तस्य । अविकलसामर्थ्य ह्यसातादिवेदनीयं स्वकार्यकारि, सामर्थ्यवैकल्यं च मोहनीयकर्मणो विनाशात्सुप्रसिद्धम् । यथैव हि पतिते सैन्यनायकेऽसामर्थ्य सैन्यस्य तथा मोहनीयकर्मणि नष्ट भगवत्यसामर्थ्य मघातिकर्मणाम् । यथा च
यही बात कवलाहारके अभाव की है अर्थात् किसी पुरुष विशेषमें कवलाहार [ भोजन का ] सर्वथा अभाव हो जाता है, क्योंकि उसमें हीयमानपना देखा जाता है" इस अनुमान द्वारा अहंत सर्वज्ञके कवलाहार का अभाव सिद्ध होता ही है । उभयत्र अनुमानों में कोई विशेषता नहीं है [दोनों ही स्वसाध्यको भलीभांति सिद्ध करने वाले हैं ] अत: शरीर स्थितिका हेतु देकर भगवानके कवलाहारको सिद्ध करना असंभव है।
श्वेताम्बर-वेदनीयकर्मका सद्भाव होने के कारण केवलीमें कवलाहार स्वीकार किया है, भगवानका वेदनीयकर्म अपनाफल [ सुख दुःख, भूख प्यासादिको ] देनेवाला है, क्योंकि वह कर्म है, जैसे उनका प्रायुकर्म अपना फल देनेवाला है।
दिगम्बर-यह कथन अयुक्त है, उपर्युक्त अनुमानसे वेदनीयकर्मका सामान्यसे फल देना तो सिद्ध होगा किन्तु भूख लगना आदि रूप विशेष फल तो सिद्ध नहीं होगा। क्षुधादि वेदना निमित्त भूत वेदनीय कर्म मौजूद है अतः केवलीके भोजनकी सिद्धि होती है ऐसा कथन भी असत् है, केवलीमें वेदनाका निमितभूत वेदनीयकर्म है यह किस हेतुसे सिद्ध करेंगे ? क्षुधादि वेदना रूप फलको देखकर सिद्ध करें तो अन्योन्याश्रय दोष होगा-भगवानमें क्षुधादि निमित्तक वेदनीय कर्मका सद्भाव सिद्ध होनेपर उसके फलकी सिद्धि होगी, और फलके सिद्ध होनेपर तन्निमित्तक वेदनीय कर्मकी सिद्धि होगी, इस तरहके अन्योन्याश्रय कारण दोनों भी असिद्धिकी कोटिमें आयेंगे ।
श्वेताम्बर-प्ररंहतके असाता वेदनीय कर्मका उदय पाया जाता है अतः उनके क्षुधा बाधाका सद्भाव है।
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