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प्रमेयकमलमार्तण्डे
विरुद्धश्चायं हेतुः; कार्यकारणभूतक्षणप्रवाहलक्षणसन्तानत्वस्य एकान्तनित्यवदनित्येप्यसम्भवात्, अर्थक्रियाकारित्वस्यानेकान्ते एव प्रतिपादयिष्यमाणत्वात् ।
शब्दविद्युत्प्रदीपादीनामप्यत्यन्तोच्छेदासम्भवात् साध्यविकलो दृष्टान्तः । न च ध्वस्तस्यापि प्रदीपादेः परिणामान्तरेण स्थित्यभ्युपगमे प्रत्यक्षबाधा; वारि स्थिते तेजसि भासुररूपाभ्युपगमेपि तत्प्रसङ्गात् । अथोष्णस्पर्शस्य भासुररूपाधिकरणतेजोद्रव्याभावेऽसम्भवात् तत्रानुद्भ तस्यास्य परिकल्पनमनुमानतः; तर्हि 'प्रदीपादेरप्यनुपादानोत्पत्ते रिव अन्त्यावस्थातोऽपरापरपरिणामाधारत्वमन्तरेण सत्त्वकृतकत्वादिकं न सम्भवति' इत्यनुमानतस्तत्सन्तत्यनुच्छेदः किन्न कल्प्यते ? तथाहि-पूर्वापरस्वभावपरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामवान् प्रदीपादिः सत्त्वात् कृतकत्वाद्वा घटादिवत् ।
दृष्टांत हेतुसे विकल होता है, क्योंकि अपर सामान्यका अर्थ विशेष गुणके आश्रित रहनेवाला धर्म किया है, ऐसा अपर सामान्य प्रदीपमें नहीं है, प्रदीप तो द्रव्य है, अतः संतानत्व हेतु साधन विकल होनेके कारण सदोष है । इसीप्रकार इस हेतुको विशेष रूप माने तो भी अनेक दोष आते हैं।
संतानत्व हेतु विरुद्ध दोष युक्त भी है, क्योंकि कार्यकारणभूत क्षणोंका प्रवाह रूप लक्षणवाला संतानत्व एकांत नित्यके समान आनित्यमें पाया जाना भी असंभव है, अर्थात् कार्य कारणभाव सर्वथा नित्य और सर्वथा अनित्यरूप पदार्थमें होना असंभव है। अर्थक्रियाकारीपना कथंचित् नित्यानित्यात्मक वस्तुमें होना ही शक्य है ऐसा हम आगे प्रतिपादन करने वाले हैं।
संतानका सर्वथा उच्छेद सिद्ध करनेके लिये दीपकका दृष्टांत प्रयुक्त किया है, वह साध्य विकल है, क्योंकि विद्युत्, शब्द, प्रदीपादि की संतान सर्वथा उच्छिन्न नहीं होती । दीपक आदिके नष्ट होनेपर भी वे अन्य परिणामरूपसे अवस्थित रहते हैं और ऐसा माननेमें प्रत्यक्ष बाधा भी नहीं पाती, यदि बाधा आना माने तो उष्ण जलमें स्थित अग्निमें भासुररूपको आपने माना है उसमें भी बाधा आयेगी।
वैशेषिक-भासुर रूपका अधिकरणभूत अग्नि द्रव्यके अभावमें उष्णस्पर्श होना असंभव है अतः उष्ण जलमें अप्रगटभूत भासुर रूपका सद्भाव अनुमान द्वारा सिद्ध करते हैं ?
जैन-तो फिर दीपक आदिमें भी अंतिम अवस्थामें अन्य अन्य परिणाम का आधारपना स्वीकार किये विना सत्त्व कृतकत्व आदि धर्मका होना असंभव है उन
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