Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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मोक्षस्वरूप विचारः
२२३ न्यत्राननुवृत्तः । अभ्युपगमविरोधश्च; न खलु परेण बुद्ध्यादिक्षणोपादानोऽपरोऽखिलो बुद्ध्यादिक्षणोऽभ्युपगम्यते । अन्यथा मुक्त्यऽवस्थायामपि पूर्वपूर्वबुद्ध्याधुपादानक्षणादुत्तरोत्तरोपादेयबुद्ध्यादिक्षणोत्पत्तिप्रसङ्गान बुद्ध्या दिसन्तानस्यात्यन्तोच्छेदः स्यात् । द्वितीयपक्षे तु पाकजपरमाणुरूपादिनानेकान्तः; तथाविधसन्तानत्वस्यात्र सद्भावेप्यत्यन्तोच्छेदाभावात् ।
जाता । आपके मान्यतामें भी विरोध होगा, क्योंकि बुद्धि आदि क्षणोंका उपादान अन्य अखिल बुद्धि क्षण है ऐसा आपने माना ही नहीं । यदि ऐसा हटाग्रहसे मान लेंगे तो मुक्तावस्थामें भी पूर्व पूर्व बुद्धि आदि उपादान भूत क्षणसे उत्तरोतर उपादेयभूत बुद्धि आदि क्षण की उत्पत्ति होनेका प्रसंग आता है, फिर बुद्धि प्रादिके संतानका अत्यन्त उच्छेद होना मोक्ष है ऐसा प्रापका अभिमत सिद्ध नहीं हो सकता । पूर्वापर समान जातीय क्षणोंका प्रवाहरूप विशेषको संतानत्व कहते हैं ऐसा द्वितीयपक्ष माने तो पाकजपरमाणुओंके रूपादिगुणोंके साथ संतानत्व हेतु व्यभिचरित होता है, क्योंकि उनमें पूर्वापर समान जातीय क्षणोंका प्रवाह रूप संतानत्व तो पाया जाता है किन्तु उस संतानत्वका अत्यन्त उच्छेद नहीं होता ।
भावार्थ-आत्माके बुद्धि आदि नौ विशेष गुणोंकी संतान सर्वथा नष्ट होती है, क्योंकि वह संतानरूप है, जैसे दीपककी संतान नष्ट होती है । मुक्तावस्था में आत्मीक गुणोंका अभाव सिद्ध करनेके लिये वैशेषिक यह अनुमान प्रमाण उपस्थित करते हैं, इसमें संतानत्व हेतु है और गुणोंकी संतान सर्वथा नष्ट होना साध्य है एवं प्रदीप का दृष्टांत है । संतानके भावको संतानत्व कहते हैं 'संतानस्य भावः संतानत्वम्', किसी पदार्थके वाचक शब्दमें त्व प्रत्यय आता है तो वह उस पदार्थमें होनेवाले सामान्य धर्म का उल्लेख करता है और वह सामान्य धर्म सामान्य नामा एक पदार्थसे समवाय नामा सम्बन्ध द्वारा सम्बद्ध होता है ऐसा वैशेषिक सिद्धांत है । सामान्य नामा पदार्थके दो प्रकार हैं पर सामान्य और अपर सामान्य, संतानत्व हेतुमें कौनसा सामान्य पाया जाता है ऐसा जैनने प्रश्न किया तब उसका कोई भी समाधान कारक उत्तर नहीं मिल सका, क्योंकि परसामान्यको हेतु मानते हैं तो अाकाशादिके साथ व्यभिचार आता है, आकाशादिमें परसामान्य तो पाया जाता है किन्तु उसका सर्वथा नाश नहीं होता अतः जो परसामान्य रूप संतान हो वह सर्वथा नष्ट होती है ऐसा कथन व्यभिचरित हुआ । संतानत्व हेतुको अपर सामान्य रूप मानते हैं तो प्रदीप
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