Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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मोक्षस्वरूप विचार:
सत्प्रतिपक्षश्च; तथाहि - बुद्ध्यादिसन्तानो नात्यन्तोच्छेदवान्, अखिल प्रमाणानुपलभ्यमानत थोच्छेदत्वात् य एवं स न तत्त्वेनोपेयो यथा पाकजपरमाणुरूपादिसन्तानः, तथा चायम्, तस्मान्नात्यतोच्छेदवानिति । न च प्रस्तुतानुमानत एव सन्तानोच्छेदप्रतीतेः सर्वप्रमाणानुपलभ्यमानतथोच्छेदत्व
दीपकादिकी बिना उपादानके उत्पत्ति होनेका प्रसंग भी अवश्यंभावी है, इन प्रत्यक्ष बाधाओंके कारण दीपकादिके संतानका सर्वथा उच्छेद नहीं होता ऐसा क्यों न माना जाय ? अनुमान प्रमाण द्वारा भलीभांति सिद्ध होता है कि प्रदीप आदि पदार्थ पूर्व स्वभावका त्याग और उत्तर स्वभावकी प्राप्ति एवं स्थिति रूप परिणमन वाले हैं, क्योंकि वे सत्तारूप एवं कृतक रूप हैं, जैसे घट पट आदि पदार्थ सत्तारूप अथवा कृतक रूप होनेसे परिणमन वाले हैं ?
विशेषार्थ - वैशेषिक पृथ्वी, जल, अग्नि एवं वायुको सर्वथा पृथक् द्रव्य मानते हैं इन द्रव्यांक परमाणु कभी भी परस्पर रूप परिणमन नहीं करते, इन पृथ्वी आदि द्रव्योंके धारण द्रवन आदि गुणधर्म भी अपने में समाविष्ट हैं । श्रग्निके जलमें स्थित होनेपर उसका उष्णधर्म तो प्रगट रहता है किन्तु भासुर धर्म [ चमकीलापन ] मात्र तिरोभूत होता है, नष्ट नहीं होता, यदि इसका नाश माने तो उसका साथी उष्ण धर्म एवं इन दोनोंका आधारभूत अग्निद्रव्य के नाश होनेका प्रसंग आता है। इस वैशेषिक सिद्धांत को लेकर आचार्यने कहा कि विद्य ुत्, प्रदीप आदि पदार्थकी संतान भी सर्वथा नष्ट नहीं होती न इनकी उत्पत्ति बिना उपादानके होती । जिसप्रकार उष्ण जलमें भासुरपना मानना प्रत्यक्ष विरुद्ध है तो भी उसे स्वीकार करते हैं उसीप्रकार दीपक बुझ जाने पर उसका अस्तित्व अन्य परिणामरूपसे रहता है ऐसा स्वीकार करना चाहिये, किसी भी सत्तामूलक पदार्थका सर्वथा नाश नहीं होता यह अटल सिद्धांत है, अतः बुद्धि प्रादि गुणोंका अत्यन्त उच्छेद होना सिद्ध नहीं होता ।
संतानत्व हेतु सत्प्रतिपक्ष दोष युक्त भी है, यथा- - बुद्धि प्रादि गुणोंकी संतान अत्यन्त उच्छिन्न होनेवाली नहीं है, क्योंकि किसी भी प्रमाण द्वारा वैसा उच्छेद होना सिद्ध नहीं होता, जो इसप्रकार प्रमाण द्वारा सिद्ध नहीं होता उसे वास्तविक रूपसे स्वीकार नहीं करते, जैसे पाकज परमाणुओं के रूपादि गुणों की संतान अत्यन्त उच्छिन्न होना नहीं मानते, बुद्धि प्रादि गुणों की संतान भी प्रमाण द्वारा उच्छिन्न होना सिद्ध नहीं होती अतः वह अत्यन्त उच्छेद होनेवाली नहीं है । वैशेषिक द्वारा प्रस्तुत किये गये
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