Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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मोक्षस्वरूप विचारः
२३१ आनन्दरूपताभिव्यक्तिश्चानाद्यऽविद्याविलयात्; इत्यभीष्टमेव; अष्टप्रकारपारमार्थिककर्मप्रवाहरूपाऽनाद्यविद्याविलयाद् अनन्तसुखसंज्ञानादिस्वरूपप्रतिपत्तिलक्षणमोक्षावाप्त रभीष्टत्वात् ।
विशुद्धज्ञानसन्तानोत्पत्तिलक्षणोऽप्यसौ मोक्षोऽभ्युपगम्यते । स तु चित्तसन्तानः सान्वयो युक्तः । बद्धो हि मुच्यते नाबद्धः । न च निरन्वये चित्तसन्ताने बद्धस्य मुक्तिः तत्र ह्यन्यो बद्धोऽ न्यश्च मुच्यते।
अनंत केवलज्ञान, दर्शनावरण कर्मके नाशसे अनंत केवल दर्शन, मोहनीय कर्मके क्षयसे अनंतसुख या आनंद, अंतरायकर्मके विनाशसे अनंतवीर्य । जीवन्मुक्तिमें ये गुण प्रगट होते हैं । परममुक्तिमें वेदनीयके क्षयसे अव्याबाधत्व, नामकर्मके अभावसे सूक्ष्मत्व, गोत्र के नाशसे अगुरुलघुत्व एवं आयुकर्मके विनाशसे अवगाहनत्व गुण प्रगट होते हैं । वैशेषिक मुक्तावस्था में किसी भी गणका सद्भाव नहीं मानते, बुद्धि, सुख जैसे सर्वथा प्रात्मीक गुणोंका अभाव भी मुक्तिमें होता है ऐसा उनका कहना है, यह सर्वथा प्रतीतिविरुद्ध है, यदि अात्मारूपी गणीका सद्भाव मुक्तिमें है तो उसके ज्ञानादिगुण अवश्य ही विद्यमान रहेंगे, क्योंकि गुणी और गुणका तादात्म्य है । तथा जहां पर अपने गुणोंका ही नाश हो वहां पर जाना कौन बुद्धिमान स्वीकार करेगा ? एक कविने व्यंग करते हुए कहा है कि:
वरं वृदावनेऽरण्ये शृगालत्वं भजाम्यहम् । न पुन वैशेषिकी मुक्ति प्रार्थयामिकदाचन ।।२८।। [ सर्वसिद्धांतसंग्रह ]
अनादिकालीन अविद्याके विलय होनेपर आनंदरूपता अभिव्यक्त होती है ऐसा ब्रह्मवादी मंतव्य भी हमें इष्ट है, किन्तु वह अविद्या मायारूप या काल्पनिक न होकर वास्तविक है, आठ प्रकारके ज्ञानावरणदि कर्मप्रवाहरूप अनादि अविद्याके विलय हो जानेसे अनंतज्ञान, अनंतसुखादिकी प्राप्ति होना रूप मोक्ष मानना हम जैनको अभीष्ट ही है ।
हम लोग बौद्धाभिमत विशुद्ध ज्ञानसंतानकी उत्पत्ति होना रूप मोक्षको भी स्वीकार कर सकते हैं, किन्तु वह ज्ञान संतान अन्वययुक्त होती है [द्रव्य सहित पर्याय होती है न केवल पर्याय] बौद्धोंके समान निरन्वय नहीं, क्योंकि जो बंधा था वह छुटता है न कि प्रबंधक, बौद्ध ज्ञानसंतानको निरन्वय [मूल-अाधारभूत द्रव्यसे रहित] मानते हैं अतः जो बद्ध था उसकी मुक्ति हुई ऐसा सिद्ध होना असंभव है, उनके यहां तो अन्य ही कोई बद्ध होता है और अन्य कोई मुक्त होता है।
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