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मोक्षस्वरूपविचारः
२२६ यच्चान्यदुक्तम्-नित्यनैमित्तिकानुष्ठानं केवलज्ञानोत्पत्तेः प्राक्काम्यनिषिद्धानुष्ठानपरिहारेण ज्ञानावरणादिदुरितक्षयनिमित्तत्वेन केवलज्ञानप्राप्तिहेतुः; तदिष्टमेवास्माकम् ।
प्रानन्दरूपता तु मोक्षस्याभोष्ट व । एकान्तनित्यता तु तस्याः प्रतिषिध्यते । चिद्र पतावदानन्दरूपताप्येकान्तनित्या; इत्यप्ययुक्तम्; चिद्र पताया अप्येकान्तनित्यत्वासिद्धः, सकलवस्तुस्वभावानां परिणामिनित्यत्वेनाग्रे समर्थयिष्यमारणत्वात् ।
अथानित्यत्वे तस्याः तत्संवेदनस्य चोत्पत्तिकारणं वक्तव्यम्; ननूक्तमेव प्रतिबन्धापायलक्षणं तत्कारणं सर्वज्ञसिद्धिप्रस्तावे । आत्मैव हि प्रतिबन्धकापायोपेतो मोक्षावस्थायां तथाभूतज्ञानसुखादि
ही है न कि एक मिथ्याज्ञान रूप । जब संसारका कारण भी मिथ्यादर्शनादि तीनरूप है तो उनका नाश केवल सम्यग्ज्ञान द्वारा किसप्रकार संभव है ? अर्थात् संभव नहीं है, इस विषयमें सर्वज्ञसिद्धि प्रकरणमें कथन कर आये हैं।
___ केवल ज्ञानोत्पत्तिके पहले तत्त्वज्ञानी नित्य नैमित्तिक क्रियाका अनुष्ठान करता है ऐसा कहा था सो हम लोगों को भी इष्ट है क्योंकि काम्य और निषिद्ध अनुष्ठान [अभिलाषा युक्त शुभ-अशुभ आचरण] को छोड़कर नित्य नैमित्तिक क्रिया [आवश्यक क्रिया] का अनुष्ठान ज्ञानावरणादि घातिया कर्मोंके क्षयका निमित्त होनेसे केवलज्ञान की प्राप्तिका हेतु है।
ब्रह्मवादीका अानंदरूप मोक्षका लक्षण भी हम जैनको कथंचित् इष्ट है, परंतु उस पानंदरूपताको एकांतसे सर्वथा नित्य मानना निषिद्ध है । चैतन्यरूपताके समान आनंदरूपता भी एकांतसे नित्य है ऐसा कहना भी अयुक्त है, हम स्याद्वादी चैतन्यरूपता को भी एकांतसे नित्य नहीं मानते, जगत्के यावन्मात्र पदार्थोंके स्वभाव परिणामी नित्य हैं ऐसा आगे प्रतिपादन करनेवाले हैं।
____ शंका-यदि आनंदरूपको अनित्य मानते हैं तो उसके एवं उसके संवेदनके उत्पत्तिका कारण बताना चाहिये ?
समाधान-सर्वज्ञ सिद्धि प्रकरणमें उस पानंदरूपता आदिके उत्पत्तिका कारण कह दिया है कि प्रतिबंधक कर्मोके नष्ट हो जानेसे अनंत सुखादिरूप आनंदरूपतादिकी उत्पत्ति होती है। मोक्ष अवस्थामें प्रतिबंधक कर्मोंसे रहित आत्मा ही अतीन्द्रिय ज्ञान सुख प्रादि का कारण होता है, जिसप्रकार घट आदि प्रावरणसे रहित प्रदीपक्षण
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