Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे विषयम्; तस्य विपरीतार्थग्राहकत्वेन मिथ्यात्वोपपत्तरित्यग्रे निवेदयिष्यते । अतो यदुक्तम्-'यथैधांसि' इत्यादि; तत्सर्वं संवररूपचारित्रोपबृहितसम्यग्ज्ञानाग्नेरशेषकर्मक्षये सामर्थ्याभ्युपगमात्सिद्धसाधनम् ।
यच्चाभ्यधायि-समाधिबलादुत्पन्नतत्त्वज्ञानस्येत्यादि; तदप्यभिधानमात्रम्; अभिलाषरूपरागाद्यभावेऽङ्गनायु पभोगासम्भवात् । तत्सम्भवे वावश्यंभावी गुद्धिमतो भवदभिप्रायेण योगिनोपि प्रचुरतरधर्माधर्मसम्भवो नृपत्यादेरिवातिभोगिनः । वैद्योपदेशादातुरोप्यौषधाद्याचरणे नीरुग्भावाभिलाषेणैव प्रवर्तते, न पुनर्ज्ञानमात्रात् । तन्नाशेषशरीरद्वारावाप्ताशेषभोगस्य कर्मान्तरानुत्पत्तिः । किं तर्हि ? परिपूर्णसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रस्य, इत्यलं विवादेन, जीवन्मुक्त रपि त्रितयात्मकादेव हेतोः सिद्धः। संसारकारणं हि मिथ्यादर्शनादित्रयात्मकं न पुनर्मिथ्याज्ञानमात्रात्मकम्, तच्च कस्मात्सम्यग्ज्ञानमात्रात्कथं व्यावत इत्युक्त सर्वज्ञसिद्धिप्रस्तावे।
वाले हैं। ज्ञान रूपी अग्नि कर्मरूपी ईंधनको जलाती है इत्यादि जो पूर्व में कहा था वह भी हमारे लिये सिद्ध साधन है, संवररूप चारित्र द्वारा बढ़ी हुई सम्यग्ज्ञानरूपी अग्नि संपूर्ण कर्मोका क्षय करनेकी सामर्थ्य रखती है ऐसा हम मानते ही हैं।
वैशेषिक ने कहा था कि समाधिके बलसे उत्पन्न हुआ है तत्त्वज्ञान जिनके ऐसे पुरुष अनेक शरीरोंको एक साथ उत्पन्न कर कर्मोंका उपभोग कर डालते हैं इत्यादि, वह सब प्रलाप मात्र है, अभिलाषारूप रागादि विकार भावके नहीं होनेपर स्त्री आदि पदार्थका उपभोग होना असंभव है, यदि संभव है तो उस उपभोगके सद्भावमें गृद्धियुक्त उस तत्त्वज्ञानी योगीके भी आपके अभिप्रायानुसार प्रचुरतर धर्माधर्म [पुण्य पाप] का सद्भाव सिद्ध होता है, फिर तो वे योगी राजाके समान अतिभोगी ही कहलाये । वैद्यके कथनानुसार रोगी औषधि आदिका सेवन बिना आसक्ति के करता है वैसे योगीजन बिना आसक्तिके उपभोग करते हैं ऐसा भी नहीं कहना, रोगी के निरोग होने की अभिलाषा अवश्य होती है, उस अभिलाषाके बिना ज्ञान मात्रसे औषधि सेवन नहीं होता। अतः अशेष शरीर द्वारा संपूर्ण कर्म फलोंका उपभोग होनेसे अन्य कर्मोकी उत्पत्ति होना नहीं रुकता, किन्तु परिपूर्ण प्रकृष्ट सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र होनेसे अन्य कर्मोंकी उत्पत्ति होना रुकता है, अब अधिक विवादसे बस हो, परममुक्ति स्वरूप मोक्षके समान जीवन्मुक्तिके प्राप्तिका कारण भी यही सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप तीन रत्न है ऐसा निश्चित होता है । संसारका कारण भी मिथ्यादर्शन-ज्ञान, चारित्ररूप त्रित यात्मक
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